फ़िर ना मिलेगी जिंदगी

धूप छाँव की चुनरीया ओढ़े ये जिंदगी रफ़्ता ..रफ़्ता होले ..होले 
चलती है ,
कभी लड़खड़ाती ,कभी गिरती   कभी खुद ही सम्भलती है ,
कभी अहज़ानो की रुत तो कभी खज़ा का मौसम तो कभी फिज़ा की बहार ,
घबराना कैसा जब जिंदगी हर पल रंग बदलती है ।
आकिबत चाहे जो हो  यूँ चुप ..चाप बैठना क्या होगा तुझे गँवारा ,
ये मत भूल ऎ मुसाफिर फ़िर ना मिलेगी जिंदगी दोबारा !
जंग ही तेरी जागीर है जिगर को अपने फौलाद कर ले ,
जानी बना अपने तलवार को ,
ज़दा खाए हुए कलेजे को आतिश 
से तू भर ले ,
माना की अजाब तेरे असहनिय है ,
पर तू तो है अजीम कलेजेवाला ,
हौसला रख ऎ मुकदर के सिकंदर जीत तेरी ही निश्चित है ,
विजयी का पताका हाथों में तेरे  देख कर ,
तेरे कदमों में होगा ये गौहान  सारा !
फ़िर ना मिलेगी जिंदगी दोबारा...!
By, Puja

कोई टिप्पणी नहीं:

'; (function() { var dsq = document.createElement('script'); dsq.type = 'text/javascript'; dsq.async = true; dsq.src = '//' + disqus_shortname + '.disqus.com/embed.js'; (document.getElementsByTagName('head')[0] || document.getElementsByTagName('body')[0]).appendChild(dsq); })();
Blogger द्वारा संचालित.