कहानी: अनकही दास्तान

एक छोटे से शहर की संकरी गलियों में, जहाँ सुबह की पहली किरण नदी के पानी पर चमकती है और शाम की हवा में चाय की खुशबू घुलती है, वहाँ रहती थी आरुषि। आरुषि का जन्म उस शहर में हुआ था, जहाँ जीवन की रफ्तार धीमी थी, लेकिन सपनों की उड़ान ऊँची। उसके पिता रामलाल एक छोटी सी किराने की दुकान चलाते थे। 
सुबह चार बजे उठकर वे दुकान खोलते, दूध की सप्लाई लेते, और शाम तक ग्राहकों से बतियाते रहते। "बेटी, जीवन मेहनत से चलता है," वे अक्सर आरुषि से कहते। माँ सरोज घर संभालतीं – रोटियाँ बेलतीं, कपड़े सिलतीं, और परिवार की हर छोटी-बड़ी जरूरत पूरी करतीं। छोटा भाई अक्षय स्कूल जाता, और शाम को गली में क्रिकेट खेलता, जहाँ गेंद कभी छत पर चढ़ जाती, तो आरुषि उसे डाँटती।आरुषि परिवार की सबसे बड़ी संतान थी, और सबकी लाड़ली। बचपन से ही वह किताबों की दुनिया में खोई रहती। स्कूल में वह हमेशा क्लास टॉपर होती, टीचर कहते, "यह लड़की एक दिन बड़ा नाम कमाएगी।" लेकिन आरुषि के दिल में पढ़ाई से ज्यादा कुछ और था – एक अनजानी सी तलाश, जैसे कोई अधूरा सपना उसे पुकार रहा हो। 

वह शाम को नदी किनारे बैठती, पानी में पत्थर फेंकती, और सोचती – प्यार क्या होता है? फिल्मों में देखा था, किताबों में पढ़ा था, लेकिन असली अहसास अभी बाकी था। कॉलेज में दाखिला लिया, बीए की पढ़ाई शुरू की। वहाँ उसकी सहेलियाँ थीं – नेहा, प्रिया, और रिया। वे फैशन, मेकअप, और बॉयफ्रेंड्स की बातें करतीं। आरुषि हँसती, लेकिन दिल से शर्मा जाती। "मैं तो बस पढ़ाई पर फोकस करूँगी," वह कहती, लेकिन अंदर से एक अजीब सी बेचैनी महसूस करती।उसी कॉलेज में पढ़ता था आरव। आरव मूल रूप से दिल्ली का था, लेकिन उसके दादाजी गांव के थे, इसलिए उसके दिल में मिट्टी की खुशबू बसी हुई थी। उसके पिता एक बड़ी फैक्ट्री के मालिक थे, अमीर लेकिन बेहद सख्त। "बेटा, जीवन में सफलता पैसों से आती है," वे कहते। माँ घर पर रहतीं, लेकिन पिता की छाया में हमेशा दबी हुई। आरव बचपन से संगीत का दीवाना था। स्कूल में वह सांस्कृतिक कार्यक्रमों में गाना गाता, और टीचर कहते, "यह लड़का स्टार बनेगा।" लेकिन पिता की इच्छा थी कि वह इंजीनियर बने। 

इसलिए कॉलेज में उसने मैकेनिकल इंजीनियरिंग चुनी, लेकिन दिल से वह गिटार बजाता और गाने लिखता। उसके दोस्त थे – रोहन, विक्रम, और अजय। वे पार्टियाँ करते, फिल्में देखते, लेकिन आरव अलग था। शाम को वह पार्क में बैठता, गिटार की तारों पर उंगलियाँ फिराता, और गाने रचता – प्यार के, दर्द के, और जीवन के।एक साल बीता, और कॉलेज का एनुअल फेस्ट आया। सुबह से तैयारी चल रही थी – स्टेज सजाना, लाइट्स लगाना, और रिहर्सल। आरुषि ने डांस ग्रुप जॉइन किया था। वह रोज प्रैक्टिस करती, घुंघरू बाँधती, और सोचती – क्या मैं स्टेज पर अच्छा परफॉर्म कर पाऊँगी? नेहा कहती, "आरुषि, तू कमाल की डांसर है। डर मत।" शाम हुई, फेस्ट शुरू। ऑडिटोरियम भर चुका था, छात्र-छात्राएँ उत्साहित। आरुषि स्टेज पर आई – लाल लहंगा पहने, चोटी में फूल सजाए, और आँखों में चमक। गाना बजा – "बादल पे पाँव हैं, चलने लगी हूँ मैं..." वह नाची, जैसे हवा में उड़ रही हो। उसके कदमों में लय थी, मुस्कान में जादू। नीचे बैठे आरव की नजर उस पर पड़ी। वह बैकस्टेज पर गिटार ट्यून कर रहा था, क्योंकि उसका बैंड अगला था। लेकिन उस पल, समय थम गया। आरुषि की मुस्कान ने आरव के दिल को छू लिया।

आरव स्टेज पर आया। उसके बैंड ने गाना शुरू किया – "तेरी आँखों में खो जाना चाहता हूँ, तेरी बाहों में सो जाना चाहता हूँ..." उसकी आवाज में एक गहराई थी, जो दिल को छू जाती। ऑडियंस तालियाँ बजाती रही। फेस्ट खत्म होने के बाद, पार्टी थी – संगीत, नाच, और खाना। आरुषि अपनी सहेलियों के साथ थी, हँस रही थी। तभी आरव आया। "हाय, मैं आरव हूँ। तुम्हारा डांस कमाल का था। लग रहा था जैसे कोई परी नाच रही हो।" आरुषि शर्मा गई, उसके गाल लाल हो गए। "धन्यवाद। तुम्हारा गाना भी बहुत emotional था। दिल को छू गया।" वे बातें करने लगे। आरव ने बताया कि वह दिल्ली से है, लेकिन यह शहर उसे अपना लगता है। आरुषि ने अपने परिवार की बातें बताईं – पिता की दुकान, माँ की मेहनत, और भाई की शरारतें। रात देर तक वे बातें करते रहे। आरव ने अपना फोन नंबर दिया, "कल कैंटीन में मिलते हैं? चाय पिएंगे।" आरुषि मुस्कुराई, "ठीक है।"अगले दिन कैंटीन में वे मिले। चाय की चुस्कियाँ लेते हुए बातें कीं। आरव ने कहा, "मैं गाने लिखता हूँ। एक सुनाऊँ?" उसने फोन से एक रिकॉर्डिंग प्ले की – "दिल की धड़कन तुम हो, मेरी हर सांस में तुम हो..." आरुषि ने सुना, आँखें बंद करके। "यह तो बहुत खूबसूरत है। जैसे मेरे दिल की बात हो।" धीरे-धीरे वे रोज मिलने लगे। क्लास के बाद लाइब्रेरी में साथ पढ़ते, किताबें शेयर करते। 

शाम को पार्क में घूमते, जहां आरव गिटार बजाता और आरुषि सुनती। एक दिन आरव ने आरुषि को गिटार सिखाया। उसकी उंगलियाँ आरुषि की उंगलियों पर रखीं, और दोनों के दिल धड़क उठे। "तुम्हारी उंगलियाँ कितनी नरम हैं," आरव ने धीरे से कहा। आरुषि शर्मा गई, लेकिन मुस्कुराई।बारिश का मौसम आया। शहर में बादल छाए, हवा ठंडी हो गई। एक दिन क्लास के बाद अचानक तेज बारिश शुरू हो गई। दोनों कॉलेज गेट पर खड़े थे, छतरी नहीं थी। आरव ने अपना जैकेट उतारा और आरुषि को ओढ़ा दिया। "भीग जाओगी।" वे एक छोटी सी छतरी के नीचे खड़े हो गए, लेकिन पानी टपक रहा था। आरव ने आरुषि का हाथ पकड़ा। "आरुषि, मैं तुम्हें कुछ कहना चाहता हूँ।" आरुषि की धड़कन तेज हो गई। "क्या?" आरव ने गहरी सांस ली, "तुम मेरी जिंदगी में आई हो, जैसे कोई सपना। हर पल तुम्हारे बारे में सोचता हूँ। मैं तुमसे प्यार करता हूँ, बहुत ज्यादा।" आरुषि की आँखें भर आईं। 

वह कुछ न बोली, बस आरव के सीने से लग गई। बारिश में वे भीगते रहे, लेकिन दिलों की गर्मी ने सब भुला दिया। उस पल, उनका प्यार शुरू हुआ – एक ऐसा प्यार जो जीवन बदल देता है।अब वे प्रेमी थे। आरव आरुषि के लिए छोटे-छोटे सरप्राइज प्लान करता – कभी फूलों का गुलदस्ता, कभी चॉकलेट्स, और कभी हाथ से लिखी चिट्ठियाँ। "तुम मेरी दुनिया हो," वह लिखता। आरुषि उसके लिए घर से टिफिन बनाकर लाती – आलू के पराठे, चटनी, और चाय। "तुम्हें पसंद आएगा," वह कहती। वे साथ घूमते – नदी किनारे बैठकर सूरज ढलते देखते, बाजार में आइसक्रीम खाते, और कभी दूर के मंदिर में जाकर माथा टेकते। आरव कहता, "तुम्हारे साथ हर जगह स्वर्ग लगती है।" आरुषि जवाब देती, "और तुम मेरी खुशी हो, मेरी हर सांस में।" उनकी बातें अंतहीन होतीं – सपनों की, भविष्य की, और उन छोटी-छोटी यादों की जो दिल को छू जातीं।एक शाम, वे पार्क में थे। आरव ने गिटार निकाला और एक नया गाना गाया – "तेरी मुस्कान में खो गया हूँ, तेरे प्यार में डूब गया हूँ..." आरुषि की आँखें नम हो गईं।

"आरव, यह गाना मेरे लिए है ना?" आरव ने हाँ में सिर हिलाया, "हाँ, हर शब्द तुम्हारे लिए।" वे एक-दूसरे के करीब आए, और पहली बार चुंबन लिया – एक कोमल, भावुक चुंबन जो उनकी आत्माओं को जोड़ देता। लेकिन प्यार की राह कभी आसान नहीं होती। उनके दोस्तों को पता चला, और धीरे-धीरे परिवार तक बात पहुँच गई। आरव के पिता को जब मालूम हुआ, वे आग-बबूला हो गए। "कौन है वह लड़की? गरीब घर की? हमारे लायक नहीं! तुम्हें अमीर घर की बहू चाहिए, जो बिजनेस संभाल सके।" उन्होंने आरव को घर बुलाया और सख्ती से कहा, "यह सब बंद करो, वरना दिल्ली भेज दूँगा नौकरी के लिए।"आरुषि के घर पर भी तूफान आया। पिता रामलाल ने सुना तो चुप हो गए, लेकिन माँ सरोज रो पड़ीं। "बेटी, हम गरीब हैं। तुम्हारी शादी अमीर घर में नहीं हो सकती। परिवार की इज्जत का खयाल रखो।" आरुषि रोई, "माँ, मैं आरव से प्यार करती हूँ। वह अच्छा लड़का है।" लेकिन पिता ने कहा, "नहीं, यह मोह है। भूल जाओ।" दोनों अलग-अलग हो गए। आरव को उसके पिता ने दिल्ली भेज दिया – एक बड़ी कंपनी में इंटर्नशिप के लिए। "वहाँ पढ़ाई पूरी करो, और यह सब भूल जाओ," उन्होंने कहा। 

आरुषि घर पर रह गई, लेकिन उसका दिल टूट चुका था। रातें करवटें बदलते बीततीं, वह आरव की चिट्ठियाँ पढ़ती और रोती। "आरव, तुम कहाँ हो?" वह फोन करती, लेकिन नेटवर्क कमजोर होता।आरव दिल्ली पहुँचा। शहर की चकाचौंध में वह अकेला महसूस करता। दिन में ऑफिस जाता, रात में गिटार बजाता और आरुषि को याद करता। वह चिट्ठियाँ लिखता – "आरुषि, तुम बिना जीवन सूना है। मैं जल्द लौटूँगा।" लेकिन चिट्ठियाँ कभी पहुँचती नहीं, क्योंकि पिता ने रोक दीं। दो साल बीते। आरुषि ने अपनी पढ़ाई पूरी की और एक छोटे स्कूल में टीचर की नौकरी कर ली। वह बच्चों को पढ़ाती, कहानियाँ सुनाती, लेकिन दिल में आरव की यादें थीं। नेहा कहती, "आरुषि, आगे बढ़। कोई और लड़का देख।" लेकिन आरुषि कहती, "नहीं, मेरा दिल सिर्फ आरव का है।"आरव ने दिल्ली में अपना म्यूजिक करियर शुरू किया। उसने एक छोटा स्टूडियो किराए पर लिया, गाने रिकॉर्ड किए, और एक एल्बम रिलीज किया। एल्बम हिट हो गया – गाने प्यार के दर्द पर थे, जो लोगों के दिल को छूते। लेकिन आरव का दिल उदास था। एक दिन, उसके शहर में म्यूजिक कॉन्सर्ट था। आरव मुख्य गायक था। नेहा ने आरुषि को बताया, "चल, आरव का कॉन्सर्ट है।" आरुषि मना करती रही, लेकिन दिल नहीं माना। वह गई। स्टेज पर आरव था, स्पॉटलाइट में चमकता। 

वह गाना गा रहा था – "तेरी यादों में जीता हूँ, तेरे बिना मरता हूँ..." आरुषि की आँखें भर आईं। कॉन्सर्ट खत्म होने के बाद, वह बैकस्टेज गई। आरव ने उसे देखा, स्तब्ध हो गया। "आरुषि!" वह दौड़कर आया, और दोनों गले मिले। आँसू बहते रहे। "मैंने तुम्हें बहुत मिस किया," आरव ने कहा। "मैं भी, हर पल," आरुषि बोली।उस रात वे पार्क में मिले। आरव ने बताया कि वह अब स्वतंत्र है, अपना स्टूडियो है, और सफल है। "लेकिन तुम बिना सब सूना है।" आरुषि ने अपनी जिंदगी बताई – नौकरी, परिवार, और यादें। वे फिर प्यार में पड़ गए, लेकिन अब चुनौतियाँ बड़ी थीं। आरव के पिता बीमार थे – हार्ट प्रॉब्लम। वे कहते, "बेटा, शादी कर लो, लेकिन हमारे लायक लड़की से।" आरुषि के पिता कहते, "हम गरीब हैं, मत बर्बाद करो जीवन।" लेकिन प्यार की ताकत मजबूत थी। एक दिन आरव के पिता को हार्ट अटैक आया। अस्पताल में थे। आरव उदास बैठा था, तभी आरुषि चुपके से आई। उसने फूल लाए, और पिता से कहा, "अंकल, मैं आरुषि हूँ। आरव बहुत प्यार करता है आपसे। मैं उसकी खुशी चाहती हूँ।" पिता ने आरुषि की आँखों में सच्चाई देखी। "बेटी, तुम अच्छी हो। मैं गलत था। प्यार की कीमत अब समझी।" उन्होंने आशीर्वाद दिया।

आरुषि के घर वाले भी मान गए। शादी की तैयारी शुरू हुई। मंडप सजा, फूलों से महकता। शादी का दिन आया – आरुषि दुल्हन बनी, लाल जोड़े में। आरव बारात लेकर आया। फेरे लिए, सिंदूर भरा। "जीवन भर साथ निभाऊँगा," आरव ने वादा किया। शादी के बाद, वे हनीमून गए – हिमाचल की वादियों में। बर्फ गिर रही थी, वे साथ घूमे, हँसे, और प्यार किया। "तुम मेरी जान हो," आरव कहता। "और तुम मेरी दुनिया," आरुषि जवाब देती।लेकिन जीवन में खुशियाँ हमेशा नहीं रहतीं। कुछ महीनों बाद, आरुषि को अजीब सा दर्द महसूस हुआ। डॉक्टर के पास गईं – टेस्ट हुए। रिपोर्ट आई: कैंसर, स्टेज थ्री। आरव स्तब्ध हो गया। "यह झूठ है! मेरी आरुषि को कुछ नहीं हो सकता।" लेकिन सच था। कीमोथेरेपी शुरू हुई। आरुषि कमजोर हो गई, बाल गिर गए, लेकिन मुस्कुराती रहती। आरव दिन-रात उसके साथ रहता, दवाइयाँ देता, गाने गाता। "तुम ठीक हो जाओगी, मेरी जान। हम साथ घूमेंगे, बच्चे होंगे।" आरुषि कहती, "आरव, अगर मैं न रहूँ, तो मेरी यादों में जीना। कोई और मत लाना।" आरव रोता, "मत कहो ऐसा। 

तुम्हें कुछ नहीं होगा।"हालत बिगड़ती गई। अस्पताल के कमरे में, आरुषि बिस्तर पर लेटी थी। आरव उसके पास बैठा, हाथ पकड़े। "आरव, याद है हमारी पहली मुलाकात? फेस्ट में।" आरव मुस्कुराया, आँसू बहते हुए। "हाँ, तुम परी लग रही थीं।" आरुषि ने कहा, "मैं खुश हूँ, क्योंकि तुम मिले। मेरा प्यार अमर है। वादा करो, तुम जियोगे, गाने गाओगे।" आरव ने रोते हुए वादा किया। आरुषि की साँसें धीमी हो गईं। उसने आखिरी बार मुस्कुराया, और चली गई। आरव चीखा, "आरुषि! मत जाओ!" लेकिन वह जा चुकी थी।आरव अब अकेला था। लेकिन वह जीता रहा, आरुषि की यादों में। उसने एक फाउंडेशन बनाया – कैंसर पेशेंट्स के लिए। उसके गाने अब दुनिया में गूँजते, प्यार और दर्द की कहानी कहते। लोग सुनते और रोते। एक गाना था – "तेरी यादें हैं मेरी सांसें, तेरे बिना जीना सीखा हूँ..." दुनिया कहती, "यह प्यार अमर है।" आरव की आँखों में हमेशा आँसू होते, लेकिन दिल में आरुषि।यह कहानी है उस प्यार की, जो मौत से भी आगे जाता है। दिल की अनकही दास्तान, जो आँसुओं में मुस्कुराती है। आरुषि और आरव का प्यार – एक ऐसी कथा जो लोगों को रुलाती है, लेकिन सिखाती है कि सच्चा प्यार कभी मरता नहीं।

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