कहानी: एक माँ का अनंत प्यार

सरस्वतीपुर नाम का एक छोटा सा गाँव था, जहाँ जीवन की रफ्तार धीमी थी, लेकिन दिलों में प्यार की धारा तेज बहती थी। गाँव के बीचों-बीच बहती नदी, हरी-भरी खेतियाँ और छोटे-छोटे मिट्टी के घर – सब कुछ इतना शांत और सुंदर कि लगता मानो स्वर्ग का एक टुकड़ा धरती पर उतर आया हो। इसी गाँव में रहते थे रामलाल, उनकी पत्नी सरला और उनका इकलौता बेटा राहुल। रामलाल शहर में एक फैक्टरी में मजदूरी करते थे। हफ्ते के पाँच दिन वे शहर में रहते, और सप्ताहांत पर घर लौटते। पैसों की तंगी हमेशा बनी रहती, लेकिन सरला का प्यार सब कुछ भुला देता। 
सरला एक साधारण गृहिणी थीं – लंबे काले बाल, साड़ी में लिपटी हुई, चेहरे पर हमेशा मुस्कान। वे घर का काम करतीं, खेतों में मदद करतीं और राहुल की दुनिया संवारतीं।राहुल की उम्र उस समय मात्र नौ साल की थी। वह स्कूल जाता, दोस्तों के साथ खेलता, लेकिन शाम ढलते ही माँ की गोद में सिर रखकर लेट जाता। सरला उसे कहानियाँ सुनातीं – राजा-रानी की, जंगल के जानवरों की, या अपनी बचपन की यादें। "बेटा, जीवन में दुख-सुख आते-जाते रहते हैं, लेकिन प्यार कभी नहीं जाता," वे कहतीं। राहुल पूछता, "माँ, तुम कभी नहीं जाओगी न?" सरला हँसतीं और उसके माथे पर चुम्बन देकर कहतीं, "नहीं बेटा, माँ तेरे साथ हमेशा रहेगी।" लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। सरला की तबीयत पिछले कुछ महीनों से ठीक नहीं थी। 

दिल की धड़कन कभी तेज हो जाती, साँस फूलने लगती। गाँव के वैद्य जी ने कहा था, "दिल की बीमारी है, आराम करो।" लेकिन आराम कहाँ? घर का काम, खेत, राहुल की देखभाल – सब सरला के जिम्मे था।एक सुबह, सरला राहुल को स्कूल के लिए तैयार कर रही थीं। अचानक चक्कर आया और वे गिर पड़ीं। राहुल डर गया, चिल्लाया, "माँ!" पड़ोसी दौड़े आए। वैद्य जी को बुलाया गया। "शहर ले जाओ, यहाँ कुछ नहीं हो सकता," उन्होंने कहा। रामलाल को तार भेजा गया। वे फैक्टरी से छुट्टी लेकर दौड़े-दौड़े आए। राहुल रो रहा था, "पापा, माँ को क्या हुआ?" रामलाल ने उसे गले लगाया, "कुछ नहीं बेटा, डॉक्टर देखेंगे तो ठीक हो जाएँगी।" लेकिन दिल में डर था। पैसों का इंतजाम कैसे करें? रामलाल ने गाँव के साहूकार से उधार लिया, कुछ दोस्तों से माँगा। आखिरकार सरला को शहर के अस्पताल ले जाया गया।अस्पताल में सरला को भर्ती किया गया। 

डॉक्टरों ने जाँच की – दिल में ब्लॉकेज था, ऑपरेशन की जरूरत। राहुल अस्पताल के बाहर बेंच पर बैठा इंतजार करता। उसकी छोटी आँखें आँसुओं से भरी हुईं। "माँ, जल्दी ठीक हो जाओ," वह मन ही मन प्रार्थना करता। रामलाल डॉक्टरों से बात करते, "साहब, कितना खर्चा?" डॉक्टर कहते, "पचास हजार।" रामलाल का दिल बैठ गया। उन्होंने खेत गिरवी रखा, गहने बेचे। ऑपरेशन हुआ। डॉक्टरों ने कहा, "सफल रहा, लेकिन देखते हैं।" सरला आईसीयू में थीं। राहुल को अंदर जाने की इजाजत नहीं थी, लेकिन वह खिड़की से झाँकता। सरला की आँखें बंद थीं, मशीनें बीप-बीप कर रही थीं। रात हो गई। राहुल सो नहीं पाया। रामलाल ने उसे गोद में लिया, "बेटा, सो जा। माँ ठीक हो जाएँगी।" लेकिन सुबह डॉक्टरों ने बुरी खबर दी – सरला की साँसें थम गईं। complication हो गया था। राहुल की दुनिया उजड़ गई। वह चिल्लाया, "माँ! माँ!" रामलाल रो पड़े। गाँव लौटे, अंतिम संस्कार किया। गाँव वाले इकट्ठा हुए, सरला की अच्छाइयों को याद किया। "बहुत नेक थी सरला," कोई कहता। राहुल चुपचाप खड़ा रहा, आँसू बहते रहे। 

घर लौटकर वह माँ की साड़ी को सूँघता, चूड़ियों को छूता और रोता। रातें बीततीं, लेकिन नींद नहीं आती। सपनों में माँ आतीं, मुस्कुरातीं, लेकिन जागते ही गायब।स्कूल जाना बंद हो गया। दोस्त बुलाते, वह भाग जाता। रामलाल काम पर जाते, लेकिन राहुल अकेला रहता। खाना नहीं खाता, बस माँ की फोटो देखता। महीने बीते। गाँव की बूढ़ी अम्मा जी, जो विधवा थीं, एक दिन आईं। "बेटा, मैंने भी अपना बेटा खोया है। दुख बड़ा है, लेकिन जीवन रुकता नहीं। तेरी माँ चाहतीं कि तू पढ़े, बड़ा बने।" राहुल ने उनकी बात सुनी। आँखों में आँसू थे, लेकिन दिल में कुछ हलचल हुई। अगले दिन वह स्कूल गया। टीचर ने पूछा, "राहुल, कहाँ थे?" वह चुप रहा। लेकिन पढ़ाई में मन लगाया। क्लास में सवालों के जवाब देता, होमवर्क करता। शाम को घर लौटता, माँ की फोटो के सामने बैठता, "माँ, आज मैंने अच्छा किया।"साल बीते। राहुल दसवीं क्लास में पहुँचा। पढ़ाई में अव्वल। 

टीचर कहते, "राहुल, तू डॉक्टर बनेगा।" वह मुस्कुराता, "हाँ सर, माँ का सपना है।" रामलाल खुश होते, लेकिन सरला की कमी खलती। राहुल अब बड़ा हो रहा था – लंबा, दुबला, आँखों में गहराई। हाईस्कूल पास किया, scholarship मिली। शहर के मेडिकल कॉलेज में दाखिला हुआ। हॉस्टल में रहने लगा। पहली रात अकेला महसूस किया। माँ की याद आई, रोया। लेकिन सुबह उठा, क्लास गया। वहाँ मिली प्रिया – एक खुशमिजाज लड़की, मेडिकल की ही स्टूडेंट। प्रिया के घर भी गरीबी थी, पिता किसान, माँ घर संभालती। प्रिया ने राहुल की उदासी देखी, "क्या बात है? इतने चुप क्यों?" राहुल ने अपनी कहानी बताई – माँ के बारे में, उनके जाने के बारे में। प्रिया की आँखें नम हो गईं। "राहुल, मैं समझती हूँ। मेरी माँ भी बीमार रहती हैं।"दोनों की दोस्ती गहरी हुई। लाइब्रेरी में साथ पढ़ते, कैंटीन में चाय पीते, बातें करते। प्रिया कहती, "राहुल, जीवन में आगे बढ़ना पड़ता है। 

माँ की यादें ताकत देती हैं।" राहुल सोचता, हाँ, प्रिया सही है। धीरे-धीरे दोस्ती प्यार में बदल गई। वे पार्क में घूमते, हाथ पकड़ते। "प्रिया, शादी के बाद मैं गाँव लौटूँगा, क्लिनिक खोलूँगा। गरीबों का इलाज करूँगा," राहुल कहता। प्रिया मुस्कुराती, "और मैं तुम्हारी मदद करूँगी, नर्स बनकर।" जीवन सुंदर लगने लगा। लेकिन फिर एक तूफान आया। प्रिया की माँ की तबीयत बिगड़ी। जाँच हुई – कैंसर। प्रिया टूट गई। राहुल ने मदद की – अपनी सारी सेविंग्स दी, डॉक्टरों से बात की, अस्पताल में भर्ती कराया। लेकिन कैंसर एडवांस स्टेज में था। प्रिया की माँ भी चली गईं। प्रिया रोती रही, "राहुल, अब क्या करूँ?" राहुल ने उसे गले लगाया, "प्रिया, मैं जानता हूँ ये दर्द। लेकिन हमें जीना है, उनकी यादों के लिए। मजबूत बनो।"वे दोनों ने एक-दूसरे को संभाला। कॉलेज खत्म हुआ। राहुल डॉक्टर बना, प्रिया नर्स। शादी कर ली। गाँव लौटे। रामलाल खुश, "बेटा, अब घर पूरा हो गया।" राहुल ने क्लिनिक खोला – छोटा सा, लेकिन सुविधाओं से भरा। गरीबों का इलाज मुफ्त। गाँव वाले आशीर्वाद देते, "डॉक्टर साहब, आप जैसे लोग कम हैं।" राहुल हर मरीज में माँ का चेहरा देखता। 

एक दिन एक छोटी बच्ची आई, उसकी माँ बीमार थी – दिल की बीमारी। राहुल ने इलाज किया, दवाइयाँ दीं। बच्ची रो रही थी, "अंकल, माँ ठीक हो जाएँगी न?" राहुल ने उसे गले लगाया, "हाँ बेटी, ठीक हो जाएँगी।" और हो गईं। बच्ची ने कहा, "अंकल, मैं भी डॉक्टर बनूँगी।" राहुल की आँखें भर आईं। घर लौटकर प्रिया से कहा, "प्रिया, आज माँ की याद बहुत आई।"जीवन चलता रहा। राहुल और प्रिया के दो बच्चे हुए – रोहन और सीमा। रोहन बड़ा हुआ, सीमा छोटी। राहुल उन्हें माँ की कहानियाँ सुनाता – सरला की, उनकी अच्छाइयों की। "तुम्हारी दादी बहुत प्यारी थीं। उन्होंने मुझे प्यार सिखाया।" बच्चे पूछते, "पापा, दादी कहाँ हैं?" राहुल कहता, "स्वर्ग में, हमें देख रही हैं, आशीर्वाद दे रही हैं।" हर साल सरला की पुण्यतिथि पर गाँव में मेला लगाता – मुफ्त चेकअप, भोजन वितरण। रामलाल अब बूढ़े हो गए थे, लेकिन खुश। "बेटा, तूने जीवन सार्थक किया।" राहुल कहता, "पापा, ये सब माँ की वजह से।"एक रात राहुल को सपना आया। सरला आईं, मुस्कुराईं, "बेटा, मैं खुश हूँ। तूने अच्छा किया। प्रिया अच्छी बहू है, बच्चे प्यारे हैं।" राहुल जागा, आँसू बह रहे थे, लेकिन दिल में सुकून था। सुबह उठा, क्लिनिक गया। एक बुजुर्ग महिला आई, बीमार। राहुल ने इलाज किया, बातें की। महिला ने कहा, "बेटा, तेरी माँ जैसी दया है तेरे में।" 

राहुल मुस्कुराया। जीवन की ये यात्रा भावुक थी – प्यार, खोना, फिर पाना। राहुल ने सीखा कि माँ का प्यार कभी खत्म नहीं होता, वो यादों में, कामों में, दिल में हमेशा जीवित रहता है।अब राहुल की उम्र चालीस पार हो चुकी थी। क्लिनिक बड़ा हो गया, गाँव में नाम हो गया। रोहन और सीमा स्कूल जाते, पढ़ाई में अच्छे। प्रिया घर संभालती, क्लिनिक में मदद करती। शाम को परिवार साथ बैठता, हँसता-खेलता। लेकिन राहुल कभी-कभी अकेले में माँ की फोटो देखता, बात करता। "माँ, देखो, तुम्हारा बेटा डॉक्टर बन गया। गाँव के लोग खुश हैं।" लगता मानो सरला सुन रही हों।एक दिन गाँव में बाढ़ आई। नदी उफान पर। कई घर डूबे, लोग बीमार पड़े। राहुल रात-दिन काम करता – दवाइयाँ बाँटता, इलाज करता। प्रिया साथ देती। बच्चे भी मदद करते। गाँव वाले कहते, "डॉक्टर साहब, आप न होते तो क्या होता।" राहुल थक जाता, लेकिन माँ की याद ताकत देती। बाढ़ थमी, जीवन सामान्य हुआ। 

राहुल को सरकार से सम्मान मिला – 'सर्वश्रेष्ठ डॉक्टर' का अवार्ड। समारोह में वह बोला, "ये सम्मान मेरी माँ का है। उन्होंने मुझे सिखाया कि सेवा से बड़ा कुछ नहीं।"समय बीतता गया। रोहन बड़ा हुआ, मेडिकल कॉलेज गया। सीमा नर्स बनने की तैयारी में। रामलाल अब चलने-फिरने में कमजोर, लेकिन परिवार के साथ खुश। राहुल अब भी क्लिनिक चलाता, लेकिन दिल में शांति। एक शाम, नदी किनारे बैठा वह माँ को याद करता। "माँ, तुम्हारी कमी हमेशा खलेगी, लेकिन तुम्हारा प्यार हमें जीने की वजह देता है।" हवा में जैसे सरला की मुस्कान महसूस हुई।ये कहानी है एक माँ के अनंत प्यार की, जो मौत के बाद भी जीवित रहता है। राहुल की जिंदगी इसका सबूत थी – दुख से उबरना, प्यार से जीना, और यादों से ताकत पाना। सरस्वतीपुर गाँव अब भी वैसा ही था, लेकिन राहुल की वजह से ज्यादा सुंदर। माँ की यादें हमेशा उसके साथ थीं, और वो यादें उसे आगे बढ़ाती रहीं।

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