‘‘इतनी जल्दबाज़ी में शादी कर रही हो लाडो रानी?’’ घर में घुसते ही आशा बुआ ने उसे गले लगाकर बड़े प्यार से पूछा.
‘‘अरे मुझे कहां जल्दी थी बुआजी, पर मां-पापा...उन्हें कौन समझाए?’’ विनीता ने मुस्कुराते हुए कहा.
‘‘जब ये मां बनेगी दीदी, तभी समझेगी कि माता-पिता के कितने अरमान होते हैं कि अपनी बेटी को दुल्हन बनते देखें, उसे अच्छे घर भेजकर निश्चिंत हो जाएं,’’ मां विनीता को प्यार भरा उलाहना देते हुए बुआ का सामान उनके कमरे में रखवाने चली गईं.
संपन्न घराने के आकर्षक और अच्छे पद पर काम करनेवाले अमन का रिश्ता 20 दिन पहले ही तो विनीता के लिए आया था. अमन अपने माता-पिता के साथ विनीता के यहां आया था. अमन और विनीता ने एक-दूसरे को पसंद किया और उनके माता-पिता को भी रिश्ता जंच गया. तब अमन के पिता ने बताया कि वे जल्द से जल्द शादी करना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें अपने ऑफ़िस के किसी प्रोजेक्ट के सिलसिले में जल्द ही अमेरिका जाना है और बहुत संभव है कि प्रोजेक्ट पांच-छह महीने तक खिंच जाए. अत: वे चाहते हैं कि जाने से पहले अमन की शादी कर दें. यही वजह थी कि विनीता के माता-पिता अपने ख़ास और क़रीबी रिश्तेदारों को बुलाकर इतनी जल्दी में शादी करने को राजी भी हो गए.
कितनीचहल-पहल हो गई है घर में. बुआ, मौसी और मामी ने तो ढोलक लेकर गाना-बजाना शुरू कर दिया है और उसकी ममेरी बहनें कितना अच्छा डांस कर रही हैं. वे पास ही बैठी विनीता को भी बार-बार बुला रही हैं डांस करने. न जाने क्यूं विनीता का मन हुआ कि अमन से फ़ोन करके पूछे कि उनके यहां क्या चल रहा है? पर नारी सुलभ लज्जा ने उसे ऐसा करने से रोक दिया.
‘‘विनु दीदी, इन 20 दिनों में कम से कम 200 बार तो बात कर चुकी होंगी आप जीजाजी से. कैसे हैं वो? हमें भी तो बताइए,’’ उसकी मौसेरी बहन श्रेया ने पूछा.
‘‘कहां यार, दो-तीन बार ही बात हुई है उनसे,’’ विनीता ने मुस्कुराकर जवाब दिया.
‘‘हमारे जीजाजी बड़े शर्मीले हैं,’’ ये विनीता की छोटी बहन नमिता थी,‘‘जीजाजी से ज़्यादा तो दीदी ने अपनी सासू मां से बात की है. रोज़ ही उनका फ़ोन आ जाता है. पूछती हैं,‘तुम्हें तो नीला रंग पसंद है विनु, पर नीला रंग शुभ अवसर पर कहां पहनते हैं, बेटा! इसके अलावा जो रंग पसंद हो वो बता दो तो उसी रंग का लहंगा बनवा दूंगी; तुम्हें कुंदन के काम का सेट पसंद आएगा या फिर जड़ाऊ सेट ख़रीदूं? बेटा तुम्हारे कमरे को इंडियन तरीक़े से सजाऊं या वेस्टर्न?’’ नमिता इस अंदाज़ में उसकी सासू मां की नकल उतार रही थी कि विनीता समेत सभी लोगों का हंसते-हंसते बुरा हाल हो गया.
‘‘करते क्या हैं भई अमन?’’ मौसी भी हंसी-मज़ाक में शामिल हो गईं.
‘‘मौसी वो एक एनजीओ में प्रोग्राम मैनेजर हैं...’’
‘‘...और फ़िलहाल अपनी शादी के मैनेजमेंट में व्यस्त हैं,’’ विनीता की बात पूरी होने से पहले ही नमिता की इस टिप्पणी से दोबार सबके कहकहे गूंजने लगे.
‘‘और विनु दीदी के लिए भी तो ऐसा ही कुछ कहो नमिता दीदी,’’ श्रेया ने नमिता को उकसाया.
‘‘हमारी साइकोलॉजिस्ट दीदी अब शादी की साइकोलॉजी सीखेंगी और प्रोगाम मैनेजर जीजाजी के प्रोग्राम यही फ़िक्स किया करेंगी,’’ नमिता का जवाब भी झट से आ गया.
तभी विनीता की सबसे प्यारी सहेली और ऑफ़िस कलीग मुग्धा आ गई. विनीता उससे बातें करने में मगन हो गई.
‘‘थोड़ी देर पहले तुम्हें फ़ोन लगाया था, बड़ी देर तक बिज़ी आ रहा था...लगता है अमन से बातचीत चल रही थी,’’ मुग्धा ने विनीता को छेड़ा.
‘‘नहीं यार! अमन की मम्मी थीं. वो तो मेरे और अमन से कहीं ज़्यादा एक्साइटेड हैं हमारी शादी के लिए. पूछ रही थीं,‘आजकल तुम लड़कियां साड़ी तो ज़्यादा पहनती नहीं हो तो पांच ही ख़रीद लूं क्या? सलवार सूट भी ज़्यादा ख़रीदूं कि नहीं, क्योंकि यदि तुम वेस्टर्न वेयर्स पसंद करती हो तो अपनी पसंद से ख़ुद ही ले लो. मैं वही ख़रीदना चाहती हूं, जिसे तुम शौक़ से पहनो.’ और ऐसी ही कुछ और बातें...इसलिए फ़ोन बिज़ी था.’’
‘‘वॉओ. यू आर लकी विनीता. तुम्हारी सास तो अभी से ही तुम्हारी पसंद का ख़्याल रख रही हैं.’’
‘‘थैंक्स,’’ मुस्कुराते हुए विनीता ने कहा,‘‘पर एक समस्या है.’’
‘‘क्या?’’
‘‘अमन का बहुत ज़्यादा फ़ोन नहीं आता. जैसे कि तुम्हारी शादी से पहले सौरभ का आया करता था.’’
‘‘सब का स्वाभाव अलग होता है, ये तुमसे बेहतर और कौन जानता है हमारे हॉस्पिटल की साइकोलॉजिस्ट मैडम? फिर सौरभ और मेरी लव मैरेज है. हमारी मंगनी पहले हो गई थी और शादी छह महीने बाद हुई थी. इस बीच सौरभ को तीन महीने के लिए बाहर जाना पड़ा था तो हम फ़ोन पर बातें करते थे, पर तुम दोनों तो एक ही शहर में हो. तुम्हारा केस चट मंगनी, पट ब्याह का है और मैरेज भी अरेंज्ड है. फ़ोन की दीवानी बनने से पहले, ज़रा इस पर भी तो ग़ौर फ़रमाओ. धीरे-धीरे ही प्यार बढ़ेगा,’’ मुग्धा की इन बातों ने जैसे विनीता के मन के संदेहों को उड़न-छू कर दिया.
फिर अपनों के जमघट, कहकहों और ढेर सारी रौशनी के बीच एक-एक कर शादी की रस्में पूरी होती गईं और विनीता अमन की होकर अमन के घर चली आई. यहां भी उसके स्वागत की बहुत बढ़िया तैयारियां की गई थीं. परिवार के सभी रिश्तेदारों से मिलकर उसे लगा कि ये परिवार भी उसके अपने परिवार जैसा ही है. विनीता को एहसास हुआ कि उसकी सासू मां वाक़ई बहुत संजीदा महिला हैं और वे अपनी बहू को किस तरह की परेशानी नहीं होने देना चाहतीं. इतने लोगों और काम के बीच भी वे बार-बार आकर विनीता की सुख-सुविधा का पूरा ध्यान रख रही थीं.
पहली रात अमन जब कमरे में आए तो उन्होंने विनीता से कहा,‘‘मैं काफ़ी थक गया हूं और तुम भी थक गई होगी. चेंज करके आराम से सो जाओ.’’
इतने सीधे-सपाट से वाक्य की कल्पना तो विनीता ने नहीं की थी. बाथरूम में नाइटी पहनते हुए वह अमन की बात का विश्लेषण कर रही थी. ये सच है कि अमन से उसकी शादी भले ही हो गई हो, पर व्यक्तिगत तौर पर वे दोनों एक-दूसरे को जानते ही कितना हैं? फिर उनकी शादी कोई फ़िल्मों में दिखाई जानेवाली शादी तो है नहीं, जो तीन घंटे में ख़त्म होनी हो और पहली ही रात पति-पत्नी को रोमैंटिक होने की जल्दबाज़ी हो. मैं ख़ामख़ां सोच रही हूं. शादी की रातभर चलनेवाली इन रस्मों के बीच मैं थक तो सचमुच गई हूं. पिछली तीन-चार रातों से वैसे ही नींद पूरी नहीं हुई थी और शादी के दिन पूरी रात जागे थे हम दोनों और फिर रिसेप्शन वाले दिन कई रिश्तेदारों को वापस लौटना था इसलिए जागना पड़ा. भला इतना समझदार कोई पति होता है क्या कि अपनी नई-नवेली बीवी की थकान का ख़्याल रखे? अपने तर्क-वितर्कों में उलझी विनीता ने जब शादी की पहली रात के लिए ख़रीदी गई अपने नाइटी में ख़ुद को निहारा तो ख़ुद को देखती ही रह गई कितनी ख़ूबसूरत लग रही थी वो. जब बाहर आई तो देखा कि अमन वहां नहीं थे. अकेली क्या करती? सोचा थोड़ी देर लेट ही जाती हूं. लेटते ही उसे नींद आ गई. कुछ समय बाद जब उसकी नींद खुली और उसने घड़ी पर नज़र डाली तो हैरान रह गई, सुबह के साढ़े छह बज चुके थे. उसने आसपास नज़र डाली. अमन पास ही रखे बड़े से सोफ़े पर सो रहे थे.
ख़ुद पर बड़ा ग़ुस्सा आया उसे. कुछ देर जागती तो कम से कम अमन से ये तो कह सकती थी कि इसी बिस्तर पर सो जाइए. बेचारे, रात भर सोफ़े पर सोते रहे. अब जगाऊंगी तो नींद टूट जाएगी. फिर वो धीरे से उठी और फ्रेश हो कर तैयार हो गई. कमरे से बाहर आई.
‘‘अरे इतनी सुबह क्यों उठ गईं विनु?’’ उसकी सास ने अपनत्व से पूछा,‘‘चाय पियोगी?’’
‘‘मैं बनाती हूं न मम्मा. आपको भी पिलाती हूं अपने हाथों की चाय.’’
‘‘ना बच्चे. कल ही तो शादी हुई है और आज किचन में काम करने दूं अपनी बहू को? अभी तो आराम करो और फिर अपने यहां चंदा है ना, वही तो किचन का सारा काम संभालती है. उससे चाय बनवाते हैं और हम दोनों साथ बैठकर चाय पिएंगे.’’
‘‘पापा और अमन?’’
‘‘अमन तो चाय पीता नहीं और तुम्हारे पापा साढ़े आठ बजे से पहले सोकर नहीं उठते. अच्छा है तुम आ गई हो तो कम से कम मुझे चाय पीने के लिए एक साथी मिल गया,’’ यह कहते हुए उसकी सास ने चंदा को बुलाया और उन दोनों के लिए चाय बनाने और नाश्ते की तैयारी करने को कहा.
अपनी सास के साथ थोड़ी बातचीत करके और चाय पीकर विनीता जब अपने कमरे में पहुंची तो अमन तैयार हो चुके थे.
‘‘आप सुबह क्या लेते हैं? मां कह रही थीं कि आप चाय नहीं पीते,’’ विनीता ने ख़ुद ही बात शुरू की.
‘‘मैं दूध लेता हूं और तुम परेशान मत हो. चंदा बना लाएगी.’’
‘‘आप तो सुबह-सुबह तैयार हो गए. क्या कहीं जा रहे हैं?’’
‘‘हां. हमारे ऑफ़िस के एक प्रोजेक्ट के लिए हमारी टीम पास के गांवों में जा रही है.’’
‘‘क्या आपने कुछ दिन की भी छुट्टी नहीं ली?’’
‘‘नहीं. और मुझे लगता है कि यदि तुमने ली है तो तुम उसे कैंसल करवा लो, क्योंकि मेरा ये प्रोजेक्ट 10 दिनों का है और मैं इस बीच घर नहीं आ पाऊंगा.’’
इतना अजीब व्यवहार? हतप्रभ हो गई विनीता. ‘‘आपकी पैकिंग हो गई?’’ उसने बातों का सिलसिला जारी रखा.
‘‘मैंने शादी से पहले ही कर ली थी.’’
‘‘क्या आपको नहीं लगता कि आपको छुट्टीे लेनी चाहिए थी?’’
इस प्रश्न से अमन थोड़ा अचकचाए ज़रूर, पर कोई जवाब नहीं दिया उन्होंने. विनीता ने थोड़ा उखड़ते हुए पूछा,‘‘क्या आपके मम्मी-पापा ने भी आपको छुट्टी लेने नहीं कहा?’’
‘‘पापा को अपने काम से ज़्यादा फ़ुरसत नहीं रहती और मां को अभी मैंने बताया नहीं है कि मैं जा रहा हूं.’’
कमाल है, नई-नई शादी और तीसरे दिन ही काम पर जा रहे हैं उसके पति. ना एक-दूसरे को समझने की कोई पहल कर रहे हैं अमन और ना ही कोई प्यार भरी बात. लगता है उसे ही पहल करनी होगी. यह बात दिमाग़ में आते ही वह बोली,‘‘अक्सर लोग शादी के बाद हनीमून पर जाते हैं, पर आप अकेले टूर पर जा रहे हैं और मुझसे हॉस्पिटल जॉइन करने कह रहे हैं, इसकी कोई ख़ास वजह?’’
विनीता के इस सवाल के जवाब में भी अमन ने कुछ नहीं कहा. बस, एकटक कुछ समय के लिए उसके चेहरे को देखते रहे.
‘‘देखिए हम दोनों एक-दूसरे को ज़्यादा तो जानते नहीं. यदि आप यूं चुप रहेंगे तो हम कैसे एक-दूसरे को समझ सकेंगे?’’ विनीता ने दूसरी कोशिश की.
तभी चंदा अमन के लिए दूध लेकर वहां आ गई. ‘‘नाश्ता तैयार है, मां आपको और अमन भैया को नीचे बुला रही हैं,’’ यह कहकर चंदा वापस चली गई.
चंदा के आने से उनकी बातचीत का सिलसिला टूट गया. इसका फ़ायदा उठाते हुए अमन ने जल्दी से दूध पिया और फटाफट कमरे के बाहर चले गए. विनीता को बहुत तेज़ ग़ुस्सा आने लगा. भला ये क्या बात हुई? काम इतना ही प्यारा था तो शादी करने किसने कहा था. अपनी नई-नई बीवी से कोई इस तरह पेश आता है क्या? उसे नहीं करना नाश्ता-वाश्ता. अभी अपने घर फ़ोन कर के मां से कहेगी कि मुझे बुला लीजिए. इस घर के लोग अच्छे हैं तो क्या हुआ, जिसके साथ फेरे लिए हैं उसे ज़रा भी ख़्याल नहीं. भागा-भागा फिर रहा अमन तो मुझसे.
‘‘अरे विनु, तुम नाश्ते के लिए क्यों नहीं आ रहीं?’’ उसकी सासू मां ने उसकी तंद्रा भंग की.
‘‘थोड़ी देर से करना चाहती हूं मां.’’
‘‘और ये क्या अमन कह रहा है वो 10 दिन के लिए टूर पर जा रहा है?’’
‘‘हां, मां. मुझे भी अभी ही पता चला.’’
‘‘पर वो तो कह रहा था कि उसने तुम्हें पहले ही बता दिया था और इससे तुम्हें कोईर् परेशानी नहीं है. वो तो बिना नाश्ता किए अपना सामान लेकर चला भी गया. भला ये कोई बात हुई?’’ उसकी सासू मां की बातें सुनकर उसे समझ ही नहीं आया कि क्या प्रतिक्रिया दे. वो चुप ही रही. उसकी चुप्पी देखकर वो ख़ुद ही बोलीं,‘‘चलो हम दोनों नाश्ता कर लेते हैं. इन्हें उठने दो, फिर मैं इस बारे में इनसे बात करती हूं.’’
उन्होंने स्नेह से विनीता का हाथ पकड़ा और अपने साथ नाश्ते के लिए ले आईं. नाश्ते की टेबल पर विनीता के ससुर भी मौजूद थे. विनीता ने उनके पैर छुए और वे तीनों नाश्ता करने लगे.
‘‘अमन आज ही टूर पर निकल गया. क्या उसने इस बारे में आपको बताया था?’’ उसकी सासू मां ने बात छेड़ी.
‘‘मैं उससे मिल ही कहां पाता हूं? पर उसे कुछ दिन की छुट्टी लेकर बहू को कहीं घुमाने ले जाना चाहिए था. मैं उसे फ़ोन करता हूं.’’
‘‘रहने दीजिए. जानते तो हैं कितना ज़िद्दी है वो. एक बार मन बना लिया है उसने तो वापस नहीं आएगा वो.’’
‘‘फिर तुम्हीं समझाओ. इतनी मान-मनौव्वल के बाद शादी के लिए रा़जी हुए तो अब ये हरक़तें हैं.’’
‘‘आप दोनों की आपस में बनती नहीं है तो ना सही, पर फ़िलहाल बहू का तो ख़्याल कीजिए.’’
कुछ देर के मौन के बाद उसके ससुर ने कहा,‘‘मुझे जिस प्रोजेक्ट पर अगले माह जाना था, अब उस पर अगले सप्ताह ही जाना होगा. कब बात करूं उससे? मैं तो उसे समझा-समझा कर थक गया.’’
‘‘ये कब पता चला?’’
‘‘अरे अभी कुछ देर पहले ही फ़ोन आया था.’’
कुल जमा तीन लोगों का परिवार है और फिर भी यहां लोगों को एक-दूसरे के बारे में यूं अचानक बातें पता चलती हैं इनके बीच अपनत्व की कमी-सी लगती है. विनीता सोच रही थी.
‘‘तो बहू की पहली बिदा आपके जाने से पहले ही करा दूं? अमन भी नहीं है, आप भी चले जाएंगे. मुझे तो आदत है अकेले रहने की, पर ये तो बोर ही होगी यहां. फिर कल इसकी मां का भी फ़ोन आया था. कह रही थीं कि पहली बिदा जल्दी करा दीजिएगा. हमें तो घर बिल्कुल ख़ाली-ख़ाली लग रहा है विनु के बिना.’’
कम से कम मां तो हैं मेरा ख़्याल रखने को. विनीता को थोड़ी राहत महसूस हुई.
‘‘जैसा तुम्हें ठीक लगे,’’ यह कहते हुए विनीता के ससुर टेबल से उठ गए.
‘‘तुम नाश्ता करो विनु. मैं इन्हें बाहर तक छोड़कर अभी आई,’’ यह कह कर उसकी सास भी उठ गईं.
अच्छा होगा कि मम्मा मुझे जल्द ही घर भेज दें. बड़ा ही अजीब महसूस कर रही है वो यहां. अक्सर नई दुल्हनों की शिकायत होती है कि पति तो बड़ा ख़्याल रखते हैं, पर सास अच्छी नहीं हैं. यहां तो उल्टा ही है. सास ख़ुश हैं और ख़्याल रखती हैं, पर पति को अपनी दुल्हन की कोई परवाह नहीं. कहीं अमन का कोई प्रेम संबंध तो नहीं है? बड़ी मुश्क़िल से शादी के लिए तैयार हुए, यही तो कह रहे थे उसके ससुर. यदि ऐसा है तो कितना ग़लत है? कितना ग़लत किया उसके सास-ससुर ने. विनीता के अंदर मौजूद साइकोलॉजिस्ट अमन के ऐसे व्यवहार की थाह पाना चाहता था. उसने सोचा, मैं कारण का पता तो ज़रूर लगाऊंगी.
‘‘अरे तुमने तो कुछ खाया ही नहीं, विनु. अच्छे से खाओ बेटा,’’ यह कहते हुए उसकी सास ने उसकी प्लेट में थोड़ा और हलवा डाल दिया. फिर मुस्कुरातेहुए बोलीं,‘‘सोच रही हूं आज शाम को ही तुम्हें बिदा कर दूं. अमन आएगा तभी वापस बुलाऊंगी. तुम आराम से घर पर रह लेना. हां, मैं ज़रूर तुम्हें मिस करूंगी तो फ़ोन कर लिया करूंगी या मिलने ही आ जाऊंगी.’’
विनीता भी मुस्कुरा दी. अमन चाहे जैसा भी व्यवहार करे, उसकी सासू मां से उसे कोई शिकायत कैसे होती? उनका व्यवहार इतना अच्छा रहा है उसके साथ, पर उसे लग रहा है कि यदि शादी थोड़े समय बाद होती तो शायद वो अमन को कुछ जान तो पाती.
दोपहर में उसकी सासू मां ने उसके घर फ़ोन किया और बिदाई करने की अपनी इच्छा ज़ाहिर की. शाम को ही उसके विनीता के पापा और नमिता आए और विनीता अपने घर लौट गई. उसने सोच लिया था कि अपने मां-पापा को भले ही अपने ससुराल में हुए बर्ताव के बारे में वो ज़्यादा कुछ न बताए, पर मुग्धा से बात करके अमन के बारे में पता ज़रूर लगाएगी.
रास्ते भर विनीता अपनी बहन नमिता और पापा के सवालों के जवाब देती जा रही थी.
‘‘तुझे सब अच्छे तो लगे न विनु?’’
‘‘हां पापा. अमन की मां तो मेरा बहुत ख़्याल रखती हैं.’’
‘‘और जीजाजी आपका ख़्याल रखते हैं कि नहीं?’’ नमिता ने उत्साहित होकर पूछा.
जवाब में विनीता सिर्फ़ मुस्कुरा दी.
‘‘पर अचानक यूं टूर पर क्यों चले गए अमन?’’ पापा ने पूछा.
‘‘कुछ ज़रूरी काम था पापा.’’
बातों के बीच कब घर आ गया पता ही नहीं चला. विनीता की मां ने उसे गले लगा लिया.
‘‘भले ही हम एक शहर में हों विनु, पर तेरे जाने से घर तो बिल्कुल ख़ाली लगने लगा था मुझे बेटा,’’ उसकी मां ने कहा.
‘‘मुझे भी वहां आप सब की याद आ रही थी मां.’’
‘‘क्यों? सब ठीक तो है ना विनु?’’
‘‘हां, मां. सब ठीक है.’’
‘‘अमन कैसे हैं?’’
‘‘ठीक हैं मां.’’
‘‘अरे वो यहां है ही कहां?’’ घर के अंदर घुसते हुए पापा बोले.
‘‘मतलब?’’
‘‘वो तो अपने ऑफ़िस के काम से 10 दिनों के लिए बाहर गया है.’’
‘‘ये क्या बात हुई?’’ मां ने विनीता की ओर देखते हुए पूछा.
उन्हें आश्वस्त कराते हुए विनीता बोली,‘‘नौकरी में ये सब लगा रहता है मां और मैं सोच रही हूं कि मैं भी अभी हॉस्पिटल जॉइन कर लेती हूं. फिर बाद में हम दोनों साथ ही छुट्टी ले लेंगे.’’
‘‘लो भई. शादी के बाद घूमने-फिरने जाने के बजाय ये दोनों तो नौकरी पर ज़्यादा ध्यान देना चाहते हैं. सच ही है, नई पीढ़ी इतनी समझदार है कि ज़िंदगी जीने का तो वक़्त ही नहीं है इनके पास,’’ मां की ख़ुशी नसीहत में बदलने लगी.
‘‘ये सब छोड़ो न मां, अच्छी सी चाय पिलवाओ. मैंने इन तीन दिनों में तुम सबको, अपने कमरे को और अपने घर की चाय को बहुत मिस किया है,’’ मां का ध्यान बंटाने के लिए विनीता ने अपने दिल की बात छेड़ दी.
पर भला मांओं का ध्यान इतनी आसानी से बंटाया जा सकता है क्या? चाय बनाते हुए मां ने किचन से ही कह दिया,‘‘अमन टूर पर गए हैं तो जाने दो. तुम इतनी जल्दी हॉस्पिटल जॉइन मत करो,’’ फिर पापा की ओर से किसी प्रतिक्रिया की अपेक्षा रखते हुए मां आगे बोलीं,‘‘ठीक कह रही हूं ना मैं?’’
‘‘अरे तुम क्यों बीच में पड़ती हो? उन दोनों को फ़ैसला करने दो,’’ पापा का संक्षिप्त जवाब आया.
‘‘पापा घर बैठकर क्या करूंगी? कर लेती हूं ना जॉइन. बाद में ले लूंगी छुट्टी,’’ पापा के तटस्थ जवाब ने उसे अपनी भूमिका बांधने का मौक़ा दे दिया.
‘‘फ़िलहाल चाय पियो और टॉपिक चेंज करो ना दीदी,’’ नमिता ने उन्हें रोका,‘‘मैंने तुम्हें कितना मिस किया, पर पता है मैंने तुम्हारी छोटीवाली अल्मारी हथिया भी ली है. तुम्हारी किताबें तुम्हारी कबर्ड में रख दी हैं. देखो, ग़ुस्सा मत होना. कबर्ड को अच्छे से जमा भी दिया है मैंने. तुम तो कित्ता गंदा छोड़ गई थीं...’’
‘‘बीच में थोड़ी सांस भी तो ले लो नमू,’’ मुस्कुराते हुए विनीता ने कहा,‘‘एक बार शुरू हो जाती है तो रुकती ही नहीं है ये लड़की.’’
फिर रात को मां ने उससे ससुराल के सभी लोगों के व्यवहार के बारे में पूछा. नमिता ने बताया कि सभी का व्यवहार अच्छा है और वो ख़ुश है उस घर में. तब कहीं जाकर मां को तसल्ली मिली. पर अमन के बारे में नमिता ने उन्हें जो जवाब दिए, उससे वो ये तो भांप गईं कि अभी विनीता और अमन के बीच वैवाहिक रिश्तों की ख़ूबसूरत शुरुआत नहीं हुई है. हां, मां ने भरसक कोशिश की कि ये बात विनीता पर ज़ाहिर न हो. मां-बेटी का रिश्ता ही ऐसा होता है. एक-दूसरे का अबोला समझ जाती हैं और एक-दूसरे पर अपने दुख ज़ाहिर नहीं होने देना चाहतीं.
रात को ही विनीता ने मुग्धा को फ़ोन लगाकर बताया कि वो दो-एक दिन में हॉस्पिटल जॉइन कर लेगी. छुट्टियां बाद में लेगी. हॉस्पिटल में जब मुग्धा से मिली तो उसे अमन के अजीब व्यवहार के बारे में बताया. यह भी बताया कि कैसे उसके ससुर नाश्ते के दौरान बता रहे थे कि अमन बड़ी मुश्क़िल से शादी के लिए राजी हुए. दोनों सहेलियों ने तय किया कि अमन के ऐसे व्यवहार का कारण पता करने के लिए वे दोनों अगले दिन छुट्टी लेंगी और अमन के ऑफ़िस जाकर पूछताछ करेंगी.
विनीता और मुग्धा अगले दिन अमन के ऑफ़िस पहुंचे. वहां रिसेप्शन पर बैठी महिला से मुग्धा ने कहा,‘‘हम अमन से मिलना चाहते हैं.’’
‘‘पर वो तो छुट्टी पर हैं. हाल ही में उनकी शादी हुई है और उन्होंने 15 दिन की छुट्टी ली है,’’ उसका जवाब आया.
‘‘ओह. तो क्या उनके किसी दोस्त से मिल सकते हैं?’’ विनीता ने कहा. वो मन ही मन हैरान भी थी.
‘‘पर आप मिलना किसलिए चाहती हैं?’’
‘‘वेल, हम लोगों की अमन से एक-दो बार पास के गांवों में कुछ प्रोजेक्ट्स को लेकर बात हुई थी. हम उससे जुड़े कुछ डीटेल्स पर चर्चा करना चाहते थे,’’ मुग्धा ने बड़े सधे हुए अंदाज़ में कहा, क्योंकि दोनों सहेलियों ने पहले ही तय कर लिया था कि वे अपना यहां आने का असली मक़सद किसी को भी नहीं बताएंगी.
रिसेप्शनिस्ट ने इंटरकॉम पर बात कर एक शख़्स को बुलाया. बाहर आकर उसने मुग्धा और विनीता से मुलाक़ात की.
‘‘मेरा नाम अमित है. आपकी क्या मदद करूं?’’
‘‘दरअसल हम लोग अमन से मिलना चाहते थे. एक प्रोजक्ट के सिलसिले में उनसे बात करनी थी,’’ विनीता ने कहा.
‘‘वो तो छुट्टी पर है. लगभग आठ दिनों बाद लौटेगा. आप चाहें तो उनका मोबाइल नंबर दे देता हूं,’’ यह कहते हुए वह मुस्कुराने लगा.
‘‘नहीं. रहने दीजिए, जब वो छुट्टी पर हैं तो हम उनके आने पर ही मिल लेंगे. पर आप मुस्कुरा क्यों रहे हैं?’’ मुग्धा ने पूछा.
‘‘क्योंकि अक्सर उसके प्रोजेक्ट्स में लड़कियां नहीं होतीं. पहली बार...’’ यह कहकर उसने वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया.
‘‘आपका मतलब?’’ विनीता ने पूछा.
‘‘नहीं-नहीं कुछ नहीं,’’ ख़ुद को संभालते हुए वह बोला.
‘‘बताइए ना? हम भी पहली बार उनके साथ प्रोजेक्ट करना चाहते हैं. उनके बारे में जानना अच्छा लगेगा. फिर हम ये भी तय कर सकेंगे कि उनके साथ काम कैसे करना है,’’ विनीता ने जोर दिया.
‘‘मैंने उसके साथ छह महीने पहले ही काम करना शुरू किया है. बहुत ज़्यादा तो नहीं जानता, पर कुछ अलग-सा है वो. उसका स्वभाव, काम और सभी के साथ व्यवहार भी बहुत अच्छा है. पर अपनी-अपनी दुनिया में खोया रहता है. कभी-कभी मुझे लगता है...’’
‘‘क्या लगता है?’’ विनीता जैसे सब जान लेना चाहती थी.
‘‘आपको उसके एक अच्छे दोस्त का फ़ोन नंबर देता हूं. आप उससे बात कर लीजिए. मुझे लगता है उससे बात करने के बाद आप यह तय कर सकेंगी कि अमन के साथ काम कैसे करना है,’’ यह बात उसने इस अंदाज़ में कही, जैसे वो ख़ुद कुछ कहने से बच रहा हो,‘‘उसका नाम है, पीटर,’’ यह कहते हुए उसने उन्हें पीटर का नंबर भी दे दिया.
अमित को धन्यवाद कहकर दोनों सहेलियां बाहर निकलीं.
‘‘तो क्या करें अब?’’ मुग्धा ने कहा.
‘‘क्या करें? मैं तो ये नहीं समझ पा रही हूं कि शादी के लिए छुट्टी ली है अमन ने और मुझसे कहा कि प्रोजेक्ट के लिए जा रहा हूं. झूठ पे झूठ. मैं जितनी जल्दी हो सके सच जानना चाहती हूं मुग्धा. पता नहीं छली गई हूं, ठगी गई हूं या फिर कोई और ही खेल चल रहा है मेरे साथ?’’ विनीता ने विचारों में डूबते उतरते, न जाने क्या-क्या सोचते हुए बोलने लगी,‘‘जहां तक मैं समझ पाई हूं, उसके माता-पिता को तो इन सब बातों का पता ही नहीं होगा. उसकी मां तो उस पर विश्वास करती हैं, पर इतना विश्वास किस काम का कि वो बेटे के सच-झूठ का पता ही न लगा सकें? उसके पिता को सिर्फ़ अपने काम से प्यार है. और अमन उसको तो मैं जान ही नहीं पाई. मैं नहीं कहती थी कि मुझे लगता है वो मुझे फ़ोन ही नहीं करता. कुछ तो गड़बड़ है मुग्धा. मुझे ख़राब तो ये लग रहा है कि मैं इसे पहले क्यों नहीं समझ पाई,’’ अपनी रौ में बोले जा रही थी विनीता.
‘‘सुन ये सामने जो रेस्तरां है. वहां बैठकर कॉफ़ी पीते हैं, फिर सोचते हैं कि क्या करें और कैसे करें,’’ मुग्धा ने कहा.
‘‘जो भी करना है, जल्दी करना है मुग्धा. आज ही.’’
‘‘आज ही करेंगे विनु. तू परेशान मत हो.’’
दोनों ने रेस्तरां में बैठकर कॉफ़ी पी. फिर मुग्धा ने पीटर के मोबाइल पर फ़ोन किया.
‘‘सर, आप पीटर बोल रहे हैं?’’
‘‘हां.’’ उधर से आवाज़ आई.
‘‘सर, सर मैं डीटीसी कोरियर सर्विस से बोल रही हूं. आपके नाम एक कोरियर आया है दिल्ली से, पर आपका पता साफ़ अक्षरों में नहीं लिखा है. क्या आप अपना पता बताएंगे, ताकि मैं कोरियर भिजवा सकूं?’’ और इस तरह दोनों ने पीटर का पता ले लिया.
अगले दस मिनट के भीतर वे पीटर के घर पहुंच गईं. बेल बजाई तो दरवाज़ा एक व्यक्ति ने खोला.
‘‘आप पीटर हैं?’’ मुग्धा ने पूछा.
अभी वह कोई जवाब दे ही पाता कि पीछे से अमन बाहर आया,‘‘कौन आ गया यार?’’ उसने पूछा. अपने सामने विनीता और मुग्धा को खड़ा देखकर वह अचकचा गया.
‘‘तो यहां आपका कौन-सा प्रोजेक्ट चल रहा है?’’ विनीता अपनी नाराज़गी छिपा नहीं सकी. ‘‘झूठ बोलने की क्या ज़रूरत थी आपको? अपने ऑफ़िस में आपने शादी के नाम पर छुट्टी ली है. घर पर प्रोजेक्ट का बहाना किया और खिसक लिए. ये अपनी बीवी से व्यवहार करने का कौन-सा तरीक़ा हुआ भला? चुप क्यों हैं बोलिए...’’
‘‘आप कम से कम अंदर तो आ जाइए,’’ पीटर ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा.
अमन चुप ही रहे तो आपे से बाहर हो गई विनीता,‘‘मैं आपसे पूछ रही हूं अमन,’’ चीख पड़ी वो.
‘‘मैं जानता हूं कि मैं एक ग़लती कर चुका हूं, पर आज दोबारा नहीं करूंगा. बैठो मैं तुम्हें बताता हूं. शायद ये सच जानकर तुम मुझसे नफ़रत करने लगो, जैसे कि पापा और दूसरे लोग करते हैं, शायद मेरा मज़ाक उड़ाओ. पर सच तो ये है कि मेरी हिम्मत नहीं थी तुम्हारा सामना करने की. ग्लानि से भरा हुआ हूं मैं विनीता,’’ यह कहकर दो पल को मौन हो गए अमन.
इसी बीच पीटर उन सभी के लिए पानी ले आए.
‘‘मैं तुमसे शादी नहीं करना चाहता था विनीता. ये बात मैंने दबे-छुपे शब्दों में पापा से कही भी थी, लेकिन वो नहीं माने. उनके दबाव के आगे मैं झुक गया और ये ग़लती कर बैठा...’’
‘‘आपका मुझसे शादी करना एक ग़लती थी तो इसकी कोई वजह भी होगी?’’ विनीता ने पूछा.
‘‘मैं होमोसेक्शुअल हूं...’’
‘‘ये कहने का साहस आप पहले क्यों नहीं जुटा सके? क्या हक़ था आपको एक लड़की के जीवन से खेलने का?’’ अमन की बात सुनकर मुग्धा भड़क उठी.
‘‘मैं मानता हूं कि मुझसे ग़लती हुई. अपने पिता को न समझा सका तो कम से कम तुमसे सच कह सकता था विनीता, पर हमारा समाज, जिस तरह मख़ौल उड़ाता है होमोसेक्शुअल लोगों का...मैं ऐसा करने की हिम्मत नहीं जुटा सका. तुमसे शादी के बाद अपनी ही नज़रों में इतना गिर गया मैं कि तुमसे आंखें मिलाने की भी हिम्मत नहीं थी. इसलिए भाग आया. सच कहता हूं, मैं कायरों की तरह भाग आया. मुझे माफ़ कर दोगी क्या?’’ यह कहते-कहते अमन की आंखों से आंसू बहने लगे.
विनीता हतप्रभ रह गई. शादी का ऐसा पहलू निकल आएगा उसने सपने में भी नहीं सोचा था. विनीता और मुग्धा को सूझ ही नहीं रहा था कि अब क्या कहें और क्या करें? उस एक कमरे में बैठे चार लोग बात करने का कोई सूत्र ही नहीं ढूंढ़ पा रहे थे.
‘‘कम से कम आपको इतना तो सोचना चाहिए था अमन कि मैं एक साइकोलॉजिस्ट भी हूं. यदि आप मुझे यह पहले ही बता देते तो मैं आपसे शादी नहीं करती. मैं जानती हूं कि होमोसेक्शुएलिटी एक सच्चाई है. मैं समझती हूं कि सेक्शुअल संबंधों में कोई किसे अपना साथी चुनना चाहता है, ये उसकी अपनी पसंद और वरीयता हो सकती है. पर आपने तो मेरे साथ धोखा किया. मुझे अंधेरे में रखा. इसके लिए आपको माफ़ी नहीं मिलेगी. कभी नहीं मिलेगी,’’ मौन तोड़ते हुए विनीता ने कहा. ‘‘मैं अपना घरबार, रिश्ते-नाते छोड़कर आपके घर आई. वो उम्मीदें लिए, जो हर नारी के मन में होती हैं. पर आपमें तो इतनी हिम्मत भी नहीं है कि अपने घर के सदस्यों को अपनी सच्चाई से रूबरू करवा सकते. मुझे आपकी होमोसेक्शुएलिटी से नहीं, बल्कि आपके व्यक्तित्व से शिकायत है.’’
अमन चुपचाप विनीता की बातें सुनते रहे. पीटर बुत बने परिस्थितियों को देखते रहे. मुग्धा ने विनीता के हाथ पर हौले से अपना हाथ रख दिया जैसे उसे संबंल देना चाहती हो.
कुछ देर के मौन के बाद विनीता कुछ सोचते हुए दृढ़ता से बोली,‘‘अमन अब आप मेरे साथ अपने घर चलिए. अपने माता-पिता को अपनी सच्चाई बताइए, ताकि मैं इस रिश्ते से आज़ाद हो सकूं और आप अपनी ग्लानि से उबर सकें. क्योंकि हमारे रिश्ते का इससे जल्दी और इससे बेहतर कोई अंत नहीं हो सकता.’’ फिर वो मुग्धा की ओर मुड़ी. उसके कंधे पर सिर रखकर रो पड़ी. मुग्धा ने उसे चुप कराने की कोई कोशिश नहीं की. कुछ देर बाद अमन, विनीता और मुग्धा अमन के घर पहुंच गए. उन्हें इस तरह अचानक आया देख अमन की मां हैरान हो गईं. इत्तफ़ाक से अमन के पिता भी घर में मौजूद थे.
‘‘अरे तुम लोग अचानक कैसे आ गए. क्या बात है? सब ठीक तो है?’’ अमन की मां ने उन सभी को अंदर बैठाते हुए
आश्चर्य से पूछा.
‘‘मां अमन आपसे कुछ कहना चाहते हैं,’’ विनीता ने बिना कोई भूमिका बांधे कहा.
अमन की मां अमन की ओर देखने लगीं.
‘‘मां, मैंने पापा से कहा था कि मैं विनीता से शादी नहीं करना चाहता. सच तो ये है कि मुझे किसी लड़की से शादी करने में कोई दिलचस्पी नहीं है,’’ अमन ने एक अपराधी की तरह स्वीकार किया,‘‘मां मैं...मैं...’’
‘‘फिर बेसिर पैर की बात शुरू कर दी इसने,’’ अमन के पापा गरजे.
‘‘पापा आप उनकी बात सुनिए तो सही,’’ विनीता ने उन्हें टोका.




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