देशभक्ति की भावना से परिपूर्ण कुछ चुनिंदा अमर गीत

‘सोने की चिड़िया’ कहे जाने वाले भारतवर्ष को 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेजो के कब्जे से आजादी मिली, और तब से देश ने हर रोज नई ऊंचाइयां छुई हैं. बौलीवुड ने भी समय-समय पर देशभक्ति से जुड़ी फिल्में बनाकर देशवासियों के हृदय को झकझोरा है. इन फिल्मों की कामयाबी में आमतौर पर अभिनेताओं और पटकथाओं के साथ-साथ गीतों का अपना अलग महत्व है, क्योंकि फिल्मों के यादों से चले जाने के बावजूद गीत लंबे अरसे तक यादों में जिंदा रहते हैं. भारत के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देशभक्ति की भावना से परिपूर्ण कुछ चुनिंदा अमर गीत आज हम आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं, जिन्हें सुनकर आप देशभक्ति के रंग में पूरी तरह रंग जाएंगे.

आजादी के इस जश्न में सबसे ज्यादा जो धुन आपके दिलो दिमाग पर छाई रहती है वो हमारा राष्ट्रीय गीत ‘वन्दे मातरम्’  स्कूल, कौलेज या फिर औफिस हर जगह इस गीत की धुन आपको कहीं न कहीं से सुनाई दे ही जाती है. लेकिन समय के साथ इस गीत पर बौलीवुड का फ्लेवर ऐसा चढ़ा कि लोग अपने आप को धीरे-धीरे इन्ही रंग मे रंगने लगे.

सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा…
यह गीत लिखने के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध रहे मोहम्मद इक़बाल का जन्म 9 नवंबर, 1877 को पंजाब के सियालकोट में हुआ, हमारी पीढ़ी के हिन्दुस्तानियों के लिए फिल्म ‘भाई बहन’ (1959) का यह गीत इक़बाल की पहचान है…

जन गण मन अधिनायक जय है भारत भाग्य विधाता…
1911-12 के आसपास इस गीत को गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने रचा था. इसे 1950 में भारत के संविधान में राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार किया गया.

मेरे देश की धरती सोना उगले…
शायद ही कोई ऐसा हिन्दुस्तानी होगा, जिसने इस गीत को कभी न सुना होगा, या यूं कहिए, गुनगुनाया न होगा…अभिनेता मनोज कुमार की फिल्म ‘उपकार'(1967) का यह गीत गुलशन बावरा ने लिखा है, जिसे संगीतकार कल्याणजी आनंद जी ने गाया.

ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख मे भर लो पानी…
भारतकोकिला कही जाने वाली लता मंगेशकर ने वर्ष 1963 के गणतंत्र दिवस के अवसर पर दिल्ली के रामलीला मैदान में इसे तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की उपस्थिति में गाया था…यह अमर गीत कवि प्रदीप (वास्तविक नाम – रामचंद्र द्विवेदी) ने लिखा, और भारत-चीन युद्ध में शहीद हुए भारतीय वीरों को समर्पित किया था. इस गीत को सी रामचंद्र ने संगीतबद्ध किया था. विशेष बात यह है कि इस गीत से जुड़े किसी भी कलाकार या तकनीशियन (गायक, लेखक, संगीत निर्देशक, वाद्ययंत्र बजाने वालों, रिकौर्डिंग स्टूडियो, साउंड रिकॉर्डिस्ट आदि) ने कोई पारिश्रमिक नहीं लिया था, और बाद में लेखक कवि प्रदीप ने इस गीत की रॉयल्टी भी ‘वार विडोज़ फंड’ (War Widow Fund) को दे दी थी.

जहां डाल-डाल पर सोने की चिड़ियां करती है बसेरा…
फिल्म सिकन्दर-ए-आज़म (1965) का यह बेहद ही खूबसूरत गीत आज हर हिन्दूस्तानी की जुबान पर है. मुझे भी यह गीत मेरे बचपन से ही कंठस्थ है…

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