कहानी - अनोखा रिश्ता
दिनचर्या के विपरीत आज कालेज से घर लौटने में मुझे काफी देर हो गई थी. भूख, शारीरिक थकान और मानसिक परेशानी से ग्रस्त मैं जब घर पहुंची, तो मैं ने बैग एक ओर फेंका और बिस्तर पर औंधी गिर पड़ी. खाने को घर में कुछ था नहीं और न कुछ बनाने की इच्छा थी. 2 दिन के लिए घर से जाते हुए मां ने मुझे सख्त हिदायत दी थी कि मैं बाहर का कुछ भी न खाऊं. सोना चाहती थी, पर भूखे पेट होने की वजह से नींद ने भी पास फटकने से इनकार कर दिया था. अचानक दरवाजे पर घंटी की आवाज सुन कर बेमन से भृकुटियों को ताने, शिथिल कदमों से चल कर जब मैं ने दरवाजा खोला, तो सामने शीतल खड़ी थी.
‘‘दीदी, आप के लिए खाना लाई हूं.’’
शीतल के मुंह से यह सुन कर ऐसा लगा जैसे मेरे निर्जीव शरीर में किसी ने प्राण फूंक दिए हों. मैं ने हंस कर उस का स्वागत किया. वैसे भी शीतल का आना हमेशा मुझे ग्रीष्म ऋतु में शीतल बयार के आने जैसा सुकून देता था.
शीतल मेरी मौसी की बेटी थी. उस की और मेरी मांएं चचेरी बहनें थीं. एक ही शहर तो क्या, एक ही महल्ले में रहने के कारण हमारे संबंध घनिष्ठ थे. हम दोनों बहनों का रिश्ता सहेलियों जैसा था. हालांकि शीतल मुझ से 6 साल छोटी थी लेकिन हम दोनों की आपस में बहुत बनती थी. किसी भी विषय में, किसी जानकारी की आवश्यकता हो तो शीतल मुझ से बेझिझक पूछती थी. मैं शीतल के हर प्रश्न का उत्तर देती और उसे ऊंचनीच भी समझाती थी. शीतल बुद्धि और सुंदरता का अच्छाखासा संगम थी. मेरी शादी के वक्त शीतल ने कालेज में प्रवेश ले लिया था. शादी के बाद मुझे दिल्ली छोड़ कर मुंबई जाना था, जहां मेरी ससुराल थी. यह जान कर शीतल बेहद उदास हो गई थी. मैं ने उसे समझाया कि जब कभी मेरी याद आए तो फोन कर लेना मुझे और छुट्टियों में मुंबई आ जाना.
आखिर वह दिन भी आ गया जब अपनों को छोड़ कर नए रिश्तों के बंधन में बंध कर मैं मुंबई आ गई. मेरी शादी के बाद भी शीतल और मेरा स्नेह पूर्ववत बना रहा. सुरेश, मेरे पति भी उस से बेटी जैसा स्नेह करते थे.
समय पंख लगा कर उड़ने लगा और देखते ही देखते मैं राहुल और रिया 2 बच्चों की मां बन गई. रिया की जचगी के लिए जब मैं दिल्ली मां के पास गई थी तो शीतल ने एम.बी.ए. का इम्तहान दे दिया था और नतीजे का इंतजार कर रही थी. नतीजा आने से पहले ही उसे मुंबई में नौकरी मिल गई. पर मौसीजी और मौसाजी शीतल को अपने से दूर नहीं करना चाहते थे. किसी तरह मैं ने और सुरेश ने उन्हें मना ही लिया. शीतल की खुशी का ठिकाना न रहा.
शीतल को मुंबई आए 4 महीने हो गए थे. साथ रहने से हमारी अंतरंगता और बढ़ गई थी. औफिस से घर लौटते ही वह बच्चों के साथ बच्ची बन कर खेलने लगती थी. बच्चे उस पर जान छिड़कते थे. एक दिन उस ने बच्चों की तोतली आवाज में कही कहानियों को टेप किया, तो मैं ने उस से गाना गाने को कहा क्योंकि गाती वह अच्छा थी. मैं ने उस के 4 गाने टेप किए.
उन दिनों मौसीजी शीतल के लिए जीजान से लड़का ढूंढ़ने में लगी हुई थीं. इत्तफाक से उन्हें एक अच्छा रिश्ता मिल गया. वर पक्ष के लोग मुंबई में ही रहते थे, पर उन का बेटा पराग कोलकाता में कार्यरत था. मौसीजी, मौसाजी के साथ मुंबई आईं. लड़का और उस के परिवार वालों से मिलने के बाद दोनों बेहद खुश थे. उन की अनुभवी आंखों ने परख लिया था कि लड़के के बाह्यरूप को यदि ताक पर रख कर देखा जाए तो लड़का हर लिहाज से शीतल के लायक था.
शीतल को देखते ही पराग और उस के घर वालों ने उसे पसंद कर लिया था, पर शीतल के मन में दुविधा थी. उस ने अपने जेहन में एक राजकुमार की तसवीर को बसा रखा था, जैसा कि इस उम्र की लड़कियों के साथ अकसर होता है. लेकिन वास्तविकता तो सपनों की दुनिया से कोसों दूर होती है. मौसीजी ने शीतल को समझाया, ‘‘बेटी, लड़के के रंगरूप पर मत जाओ. लड़का गुणों की खान है. इतनी सारी डिग्रियों से विभूषित, इस छोटी सी उम्र में इतने ऊंचे पद पर कार्यरत है. व्यवहार भी उस का अति शालीन है. मेरा मन कहता है, तुम वहां खुश रहोगी.’’
मौसीजी के समझाने पर शीतल पराग से मिलने के लिए तैयार हो गई. पराग से मिलने के बाद शीतल ने भी शादी के लिए अपनी रजामंदी दे दी. इस तरह शीतल की शादी हो गई और वह पराग के साथ कोलकाता चली गई.
शादी के बाद शीतल जब पराग के साथ पहली बार अपने ससुराल मुंबई आई, तो पहले ही दिन दोनों हम से मिलने चले आए. शीतल बेहद खुश नजर आ रही थी. उस का खिलाखिला रूप व बातबात पर चहकना, उस के सफल दांपत्य जीवन की दास्तान को बयां कर रहा था. फिर भी औपचारिकतावश मैं ने जब शीतल से उस का कुशलक्षेम पूछा, तो उस ने चहकते हुए कहा, ‘‘दीदी, आप, मांपापा सब सही थे. पराग सचमुच गुणों की खान हैं. वे मुझे पलकों पर बैठा कर रखते हैं. ससुराल में भी मुझ से सब बहुत स्नेह करते हैं.’’ सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा.
इस के बाद शीतल की जिंदगी में कुछ बुरा घटा, तो कुछ अच्छा. बुरी घटना यह थी कि हृदयगति रुक जाने के कारण मौसाजी गुजर गए. खुशखबरी यह थी कि शीतल मां बनने वाली थी. रीतिरिवाज यह कह रहे थे कि पहली जचगी के लिए शीतल को मायके जाना चाहिए. पर पराग को शीतल से इतने दिनों का अलगाव मंजूर नहीं था, इसलिए उस ने मौसीजी को ही कोलकाता बुला लिया.
पराग और शीतल दोनों को बेटी की चाह थी. उस की डिलिवरी का दिन करीब आ गया था. हम यहां बेसब्री से खुशखबरी का इंतजार कर रहे थे. खबर आई कि उन की इच्छानुसार उन्हें बेटी पैदा हुई थी. पर बच्चे को जन्म देने के तुरंत बाद शीतल की हालत बिगड़ने लगी थी. डाक्टरों की लाख कोशिशों के बावजूद शीतल को बचाया नहीं जा सका. यह खबर सुन कर मेरे हाथपैर कांपने लगे. मेरी हालत इतनी खराब हो गई थी कि सुरेश मुझे समझासमझा कर थक गए.
‘‘उमा, ऐसी नाजुक घड़ी में तुम्हें संयम बरतना ही होगा. तुम इस कदर टूट जाओगी तो मौसीजी, पराग इन सब को कौन संभालेगा? मैं कोलकाता के टिकट ले कर आता हूं. तुम जाने की तैयारी करो. इस वक्त हमारा वहां रहना बेहद जरूरी है,’’ कह कर सुरेश चले गए.
शाम की फ्लाइट से हम कोलकाता पहुंचे. हम ने अपने आने की सूचना पराग को दे दी थी. एअरपोर्ट से बाहर आने पर हम ने देखा कि पराग बेहद उदास मुद्रा में चल कर हमारी ओर आ रहा था. घर पहुंचने पर हम ने देखा कि मौसीजी एक कोने में दुबकी बैठी थीं. मैं ने उन्हें जा कर गले से लगा लिया. पर इकलौती बेटी की मौत ने उन्हें पत्थर बना दिया था. न रो रही थीं, न ही बातें कर रही थीं. पराग की मां की हालत भी ठीक नहीं थी. उन्हें दमे का दौरा पड़ गया था. पालने में शीतल की बेटी सोई थी, दुनिया से बेखबर.
पराग एक रोबोट की तरह अपना काम निबटा कर दफ्तर जाया करता था और दफ्तर से लौट कर घर आने पर एक अंधेरे कोने में बैठ जाया करता था. शायद शीतल की याद के साथ रहना चाहता था. नवजात शिशु के रोने पर यंत्रचालित मशीन की तरह चल कर आता, उसे चुप करा कर फिर अंधेरे में बैठ जाता. यही उस की दिनचर्या थी. दोनों वृद्ध माताएं बच्ची की परवरिश में लगी रहती थीं. 2 दिन वहां रुक कर हम वापस मुंबई लौट आए. मैं ने और सुरेश ने सब को आश्वासन दिया कि जब भी हमारी जरूरत पड़े, हमें खबर कर दें. पराग ने शिशु की देखभाल के लिए एक दाई रख ली. मौसीजी कब तक पराग के घर में पड़ी रहतीं. आखिर उन का अपना कहलाने वाला इस दुनिया में कोई और था भी तो नहीं.
मैं ने आग्रह कर के मौसीजी को अपने पास बुला लिया. मौसीजी दिन भर शीतल की ही बातें किया करती थी. मैं भी उन्हें बातें करने को प्रोत्साहित किया करती थी. इस तरह खुल कर बातें करने से उन का दुख कुछ तो कम हो रहा था. 2 महीने मेरे पास रहने के बाद मौसीजी ने वापस लौटने की इच्छा जाहिर की. वे कुछ हद तक सामान्य भी हो गई थीं. मैं भी अब उन पर रुकने के लिए दबाव नहीं डालना चाहती थी. मैं ने उन से कहा, ‘‘जब भी मन हो, बेझिझक मेरे पास आ जाइएगा.’’शीतल को गुजरे करीब 3 महीने हुए थे कि मां ने मुझे खबर दी कि मौसीजी ने बताया है कि पराग शादी कर रहा है. मौसीजी जैसे सांसारिक बंधनों से, मोहमाया से अपनेआप को मुक्त कर चुकी थीं. उन्हें अब कोई खबर विचलित नहीं कर सकती थी. पर खबर सुन कर मैं अवाक रह गई. पराग तो शीतल के गुजरने के बाद इस कदर टूट गया था कि मुझे डर लग रहा था कि कहीं उस का नर्वस बे्रकडाउन न हो जाए. मेरा दिल इस बात पर विश्वास करने से इनकार कर रहा था. मैं सोच भी नहीं सकती थी कि कोई इतनी जल्दी कैसे बदल सकता है. मैं सुरेश के दफ्तर से लौटने का इंतजार करने लगी. सुरेश ने घर के अंदर कदम रखा ही था कि उन्हें देखते ही मैं फट पड़ी, ‘‘सुरेश, जानते हो, पराग शादी कर रहा है. अभी मुश्किल से 3 महीने बीते होंगे शीतल को गुजरे और वह शादी के लिए तैयार हो गया. ये सारे मर्द एक जैसे होते हैं. एक नहीं तो दूसरी मिल जाएगी.’’
सुरेश भी खबर सुन कर अचरज में पड़ गए. फिर तुरंत ही संभल कर उन्होंने कहा, ‘‘उमा, ऐसा नहीं कहते. शीतल अगर नहीं रही तो इस में पराग का क्या दोष? वह कितने दिन उस के शोक में बैठा रहेगा? बच्ची को संभालने वाला भी तो कोई चाहिए न? उस की बूढ़ी मां कब तक उसे संभालेगी?’’
सुरेश की बातों ने मुझे सांत्वना देने के बजाय आग में घी का काम किया. मैं चीखने लगी, ‘‘हांहां, आप भी तो मर्द हो, पराग का पक्ष तो लोगे ही. कल अगर मुझे कुछ हो जाए तो आप भी दूसरी शादी करने से बाज नहीं आओगे. बच्ची का बहाना मत बनाओ. बच्ची की आड़ में अपनी इच्छा पूरी की जा रही है. यही काम यदि कोई औरत करे तो समाज उस पर शब्दों के बाण चलाने से नहीं चूकेगा,’’ मैं आक्रोश में आ कर पराग और सुरेश ही नहीं, बल्कि पूरी पुरुष जाति को कोसने लगी. सुरेश ने मेरे भड़कने पर भी अपना आपा नहीं खोया. शांत स्वर में मुझे समझाने लगे, ‘‘उमा, तुम अभी गुस्से में हो. गुस्से में जब लोग अपना संयम खो बैठते हैं तो सहीगलत का निर्णय नहीं ले पाते. इस तरह दूसरों पर इलजाम लगाना तुम्हें शोभा नहीं देता.’’
2 दिन बाद पराग का ईमेल आया, ‘‘दीदी, मैं शादी कर रहा हूं. बहुत ही सादे ढंग से मंदिर में हो रही है शादी. बाकी मिलने पर बताऊंगा.’’ मैं ने इस संक्षिप्त से मेल पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की.
एक दिन दोपहर का वक्त था. बच्चे स्कूल गए थे. काम निबटा कर मैं थोड़ा आराम कर रही थी. शीतल के बारे में ही सोच रही थी कि मुझे उस टेप की याद आई जिस में बच्चों की आवाज के साथसाथ शीतल की आवाज भी टेप थी. टेप चला का सुनने लगी कि दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा खोला तो देखा सामने पराग खड़ा था. अभी तक पराग से मेरी नाराजगी दूर नहीं हुई थी फिर भी औपचारिकतावश मैं ने पराग को अंदर बुलाया. टेप में शीतल की आवाज सुन कर चौंक गया पराग. वह कुछ कहना चाहता था, पर इतना भावुक हो गया कि उस की आवाज भर्रा गई. अचानक अपनी भावना पर काबू न पा सकने के कारण फूटफूट कर रोने लगा. मैं ने उसे पीने को पानी दिया. वह कुछ देर यों ही बैठा रहा. फिर उस ने मुझ से फिर शुरू से टेप चलाने को कहा.
थोड़ा संयत होने पर मैं ने उसे खाना खाने को कहा. उस ने जवाब में कहा, ‘‘दीदी, मुझे भूख नहीं है. आप बस थोड़ी देर मेरे पास बैठिए. मैं औफिस के काम से मुंबई आया हूं. आप से अकेले में बातें करना चाहता था, इसलिए आप के पास चला आया.’’
मैं ने उसे शादी की मुबारकबाद दी तो कुछ देर चुप रहने के बाद उस ने कहा, ‘‘दीदी, आप सोच रही होंगी कि मैं ने इतनी जल्दी शादी कैसे कर ली? क्या करता दीदी, मैं मजबूर हो गया था. मां दमे की मरीज हैं कब तक श्रेया की देखभाल करतीं. मां की सहायता के लिए मैं ने 2 दाइयां रखीं. पहली आई बच्ची के मुंह में दूध का बोतल दे कर ऊंघती रहती थी. दूध किनारे से बह जाता था. दूसरी रखी तो घर से चीजें गायब होने लगीं. मामाजी आए थे, उन के समझाने पर मैं ने शादी के लिए हां कह दिया. मामाजी ने अखबारों में इश्तहार दे दिया. कई परिवारों की ओर से जवाब आया. मैं ने किसी भी लड़की की तसवीर की ओर नजर तक नहीं डाली. बस आए हुए पत्रों को पढ़ता रहा. तभी एक पत्र ने मेरा ध्यान आकर्षित किया. यह पत्र गरिमा के पिता ने लिखा था. शादी के 1 साल बाद ही गरिमा के पति की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. पत्र पढ़ने के बाद मैं ने उन से संपर्क किया. मैं जब गरिमा से मिला तो मैं ने देखा कि गरिमा का बाह्यरूप अत्यंत साधारण था. पति की मृत्यु के बाद वह छोटीमोटी नौकरी करती हुई उद्देश्यहीन जीवन जी रही थी. गरिमा ने मुझे एक और बात बताई कि जब वह काफी छोटी थी, उस की मां नहीं रही थीं और विमाता ने ही उसे पाला था.
‘‘उस वक्त मुझे यही लगा कि जिस लड़की ने इस छोटी सी जिंदगी में इतने सारे उतारचढ़ाव देखे हों, वह मेरी श्रेया की देखभाल अवश्य अच्छी तरह करेगी. दूसरी बात जो उस वक्त मेरे जेहन में आई, वह यह थी कि गरिमा से शादी कर के मैं न सिर्फ श्रेया के लिए एक अच्छी मां ले कर आऊंगा, बल्कि एक अबला को भी नवजीवन दूंगा.’’ पराग के मुंह से उस के विचार जानने के बाद और यह जानने के बाद कि उस ने बाह्य रूप को ताक पर रख कर एक योग्य लड़की का चुनाव किया था, मुझे लज्जा आने लगी अपनेआप पर कि मैं ने पराग को कितना गलत समझा था. अकसर हम बिना पूरी जानकारी के लोगों के बारे में कितनी गलत राय बना लेते हैं.
श्रेया साल भर की हो गई थी. पराग ने उस के जन्मदिन की तसवीर भेजी थी. गुलाबी रंग की फ्रौक में परी लग रही थी श्रेया. श्रेया का जन्मदिन और शीतल की बरसी की तारीख एक ही थी. सुबह श्रेया को जन्म दे कर, उसी रात को नहीं रही थी शीतल. पराग ने लिखा था कि शीतल की खुशियों के लिए उस ने पूरे धूमधाम से श्रेया का जन्मदिन मनाया था, क्योंकि वह श्रेया की खुशियों के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहता था.
श्रेया जब 2 साल की हुई तो पराग को अमेरिका में अच्छी नौकरी मिल गई. अमेरिका जाने से पहले तीनों आए थे मुझ से मिलने. श्रेया को देख कर, शीतल को याद कर के मेरी आंखें गीली हो गई थीं. मेरा ध्यान गरिमा की ओर गया तो मैं ने मुसकरा कर उस का स्वागत किया. गरिमा को मैं तसवीर में तो देख चुकी थी, पर पहली बार उस से रूबरू होने का मौका मिला था. उस की शक्लसूरत तो अति साधारण थी ही, वह कुछ भीरू और संकोची भी लगी. मैं ने उस से बातचीत करने की कोशिश की तो धीरेधीरे मेरे स्नेहिल व्यवहार के कारण वह मुझ से खुल कर बातें करने लगी. जब वे जाने लगे तो मैं ने गरिमा से संपर्क बनाए रखने को कहा.
गरिमा ने अपना वादा निभाया और मुझ से संपर्क बनाए रखा. कभी फोन पर, तो कभी ई मेल भेज कर. श्रेया 3 साल की थी तो खबर आई कि गरिमा ने बेटे को जन्म दिया है. मैं ने उन्हें बधाई दी. पुत्र के जन्म के 1 साल बाद पूरा परिवार भारत आया तो वे जल्द ही मुझ से मिलने भी आए. श्रेया अब पटरपटर बोलने लगी थी. उस का भाई सांवला, दुबलापतला था. वह अपनी मां पर गया था. पराग और गरिमा बेहद आत्मीयता से हम से मिले.
लेकिन पहले की तरह उन्होंने हमारे साथ संपर्क बनाए रखा. पराग के मुकाबले गरिमा ही ज्यादा बातें किया करती थी. गरिमा ने मुझे बताया कि अब उन्होंने निश्चय किया है कि वे श्रेया को उस की मां का सच बताना चाहते हैं. पराग का मानना था कि अब श्रेया समझने लगी है, इसलिए इस बात का उसे किसी और से पता लगने पर उसे दुख होगा कि हम ने उस से क्यों छिपा कर रखा. यह सुन कर मैं घबरा गई. मैं सोचने लगी कि कहीं वास्तविकता जानने के बाद श्रेया का व्यवहार गरिमा के प्रति बदल गया तो? 2 दिन बाद पराग का ईमेल आया, ‘दीदी, हम ने श्रेया को शीतल के बारे में बता दिया है. सब कुछ जानने के बाद भी उस का व्यवहार सामान्य है. उस में कोई बदलाव नहीं है.’
पढ़ कर मैं ने राहत की सांस ली. इस बार पराग ने श्रेया को अकेले भारत भेजा. उस का कहना था कि अगर श्रेया अपनी दिवंगत मां के बारे में कुछ जानना चाहे तो अपनी नानी से या मुझ से बेझिझक पूछ सकती है. श्रेया को लेने हम एअरपोर्ट गए. श्रेया जब बाहर निकली तो मैं दंग रह गई उस 13 वर्षीय किशोरी को देख कर वह हूबहू शीतल की तरह दिख रही थी.
श्रेया घर आ कर रिया और राहुल के साथ खेलने में व्यस्त हो गई. मुझे तो जैसे लाइसैंस मिल गया था शीतल के बारे में बातें करने का. मैं जब उसे शीतल के बारे में चंद बातें बताने लगी, तो उस ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. फिर भी मैं चुप नहीं रही और श्रेया को कुछ और बताने लगी शीतल के बारे में, तो श्रेया ने कहा, ‘‘छोडि़ए न बड़ी मां. मुझे उन के बारे में जानने में कोई दिलचस्पी नहीं है. मेरी मां तो गरिमा हैं.’’
श्रेया जब तक भारत में रही गरिमा के ही गुणगान करती रही. शीतल के बारे में उस ने कुछ नहीं पूछा. राहुल और रिया के साथ चहकती फिरती रही. नियत दिन पर हम से आज्ञा ले कर वह अमेरिका लौट गई.न्यूयार्क के एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय में राहुल को एम.एस. की पढ़ाई के लिए दाखिला मिल गया. रिया के लिए भी एक अच्छा सा वर मिल जाने के कारण मैं ने उस की शादी कर दी. सुरेश ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी. हम सब ने एकसाथ अमेरिका जाने का फैसला किया.
राहुल को भी क्रिसमस की 1 सप्ताह की छुट्टी मिली. हम सब पराग के घर पहुंचे. पराग और गरिमा ने हमारा दिल खोल कर स्वागत किया. श्रेया अब कालेज में दूसरे शहर में पढ़ती थी. पर उस की भी छुट्टियां शुरू हो गई थीं, इसलिए वह भी वहीं थी. श्रेया 21 साल की सुंदर युवती थी. दोनों बच्चों ने आगे बढ़ कर हमारा अभिवादन किया.
हमारे आने की खबर मिलते ही गरिमा ने ढेर सारी खाने की चीजें बना डाली थीं. नाश्ता करने के बाद सुरेश और पराग किसी चर्चा में मशगूल हो गए. गरिमा रसोईघर की ओर जाने लगी, तो उस के पीछेपीछे मैं ने भी रसोई में प्रवेश किया. मैं ने गरिमा की मदद करनी चाही तो उस ने एक कुरसी खींच कर उस में मुझे बैठा दिया, ‘‘आप यहां आराम से बैठ कर बातें कीजिए. मैं सब कर लूंगी.’’ फिर गरिमा वहां से जाने लगी तो मैं ने उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘गरिमा, मैं तुम से कुछ कहना चाहती हूं. तुम ने बच्चों को बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं. शीतल के गुजरने के बाद, श्रेया के बारे में सोच कर मैं बहुत परेशान हो गई थी कि बिन मां की बच्ची का क्या होगा? पर तुम ने तो उसे मां से भी बढ़ कर प्यार दिया.’’
‘‘दीदी, मुझे भी तो श्रेया के बदौलत ही समाज में इतनी इज्जत मिली. उसी की बदौलत तो मैं इस घर में आई.’’
मैं ने उसे गले से लगा लिया, ‘‘यह तुम्हारा बड़प्पन है गरिमा कि तुम ऐसा सोचती हो.’’
मेरा स्नेहसिक्त स्पर्श पा कर जैसे गरिमा के अंदर दबी हुई ज्वालामुखी फूट पड़ी. मैं ने महसूस किया, गरिमा कितनी आहत थी. आज उस ने मेरे सामने अपना दिल खोल कर रख दिया, ‘‘दीदी, पराग ने आज भी अपने मन में शीतल को बसा रखा है. वहां मेरे लिए अभी भी कोई जगह नहीं है. शादी के बाद कई सालों तक हम दोनों के बीच एक अभेद्य दीवार बनी रही. सिर्फ श्रेया की वजह से हम एकदूसरे से जुड़े थे. मुझे लगता है कि सिर्फ श्रेया के लिए ही पराग ने मुझ से शादी की थी. पराग ने मुझ से शादी के कई साल बाद शारीरिक संबंध बनाए, जिस का नतीजा अमित है. दीदी, आप ही बताइए, जैसा प्यार उन्होंने शीतल के साथ किया था, क्या मैं भी वैसे ही प्यार की हकदार नहीं हूं?’’
अचानक मुझे गरिमा बेहद खूबसूरत लगने लगी. उस की आंतरिक सुंदरता छलक कर बाहर आती हुई दिखाई दी मुझे. मैं ने सोच लिया कि मैं पराग से इस विषय पर अवश्य बात करूंगी. खाना खाने के बाद हम घूमने जाने के लिए निकले. गरिमा और पराग ने अपनीअपनी गाड़ी निकाली. गरिमा का एक और रूप देख कर मैं आश्चर्यचकित रह गई. पूरे आत्मविश्वास के साथ अमेरिका की सड़कों पर गाड़ी दौड़ा रही थी गरिमा. मेरे आश्चर्य प्रकट करने पर उस ने कहा, ‘‘शुरूशुरू में मैं बहुत डरती थी पर
कार चलाना मेरी मजबूरी थी. यहां सार्वजनिक वाहन नहीं मिलते न. कब तक छोटेछोटे कामों के लिए भी पराग पर निर्भर रहती?’’
मैं ने कहा, ‘‘वाह, गरिमा, तुम ने बहुत मेहनत की है अपनेआप को ऊपर उठाने में. मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह वही संकोची गरिमा है.’’
सुबह उठने पर जब मैं ने देखा कि सूरज की उजली किरणें बगीचे को स्पर्श करने लगी हैं, तो अपने शरीर पर भी उन किरणों की छुअन महसूस करने के लिए अपने को रोक न पाई और बगीचे में चहलकदमी करने लगी. तभी पीछे से पराग ने पुकारा. मैं ने सोचा यही सही मौका है पराग से बातें करने का. कुछ औपचारिक बातों के बाद में सीधे मुद्दे पर आ गई, ‘‘पराग, गरिमा ने कितनी खूबसूरती से घर और बच्चों को संभाला और उन्हें बड़ा किया है न?’’
‘‘हां दीदी, रिश्तेदारों में अपनेआप को साबित करने के लिए गरिमा को न जाने कितनी बार अग्निपरीक्षा से हो कर गुजरना पड़ा. उसी की बदौलत तो निश्चिंत हो कर मैं नौकरी में अपना ध्यान लगा सका.’’
‘‘गरिमा के योगदान को मानते हो न पराग, फिर क्या तुम ने भी उसे वह सब कुछ दिया, जिस की वह हकदार है?’’
चौंक कर देखा पराग ने मेरी तरफ, ‘‘क्यों दीदी, मैं ने उसे क्या कुछ नहीं दिया? एक आरामदायक घर, पैसा, अपनी इच्छानुसार जीने की छूट और क्या चाहिए जिंदगी जीने के लिए?’’
‘‘पराग, एक स्त्री भौतिक सुखसुविधाओं से बढ़ कर अपने पति के सान्निध्य की भूखी होती है. अपना संकोच छोड़ कर तुम से पूछना चाहती हूं कि क्या तुम ने कभी गरिमा को अपने अंक में भर कर उस से टूट कर प्यार किया? क्या उसे वैसा प्यार देते हो जैसा तुम शीतल को दिया करते थे?’’
‘‘दीदी, क्या गरिमा ने आप से कुछ कहा?’’
‘‘यही तो विडंबना है पराग कि एक नारी अपने मुंह से कुछ नहीं कहेगी. उस की व्यथा को तुम्हें खुद समझना होगा. उस की भी तो शारीरिक जरूरतें हैं, जिन्हें सिर्फ तुम पूरा कर सकते हो. मुझे लगता है, तुम अभी भी शीतल को भुला नहीं पाए हो. शीतल तुम्हारा अतीत थी और गरिमा तुम्हारा वर्तमान. अतीत को वर्तमान पर हावी मत होने दो. इस से पहले कि गरिमा को अपना अस्तित्व बिखरता हुआ महसूस होने लगे, उस के साथ अकेले में वक्त बिताओ, उसे प्यार दो.’’
काफी देर तक सोच में डूबा रहा पराग, मैं ने उसे झकझोरा तो वह बोला, ‘‘दीदी, मुझ से बड़ी भूल हो गई है. आप चिंता न करें, मैं गरिमा को उस का हक दूंगा.’’
बातों ही बातों में पराग ने बताया कि श्रेया किसी विदेशी लड़के को चाहती है. शुरूशुरू में तो वह इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं था पर गरिमा ने समझाया था उसे कि लड़का पढ़ालिखा और होनहार है. और फिर श्रेया इस रिश्ते को ले कर गंभीर है, इसलिए हमें श्रेया का दिल नहीं दुखाना चाहिए.
गरिमा के इस सोच ने फिर मुझे उस का कायल बना दिया. मैं ने कहा, ‘‘गरिमा बिलकुल सही कहती है, पराग. हमें समय के साथ बदलना चाहिए.’’
धूप तेज हो गई थी. हम घर के अंदर आ गए.
गरिमा और पराग भारत आ कर सभी रिश्तेदारों के सामने श्रेया की शादी करना चाहते थे. विदेश में बैठेबैठे ही पराग ने कंप्यूटर द्वारा मुंबई में शादी के लिए जगह, खानपान आदि का प्रबंध कर लिया. नियत दिन से 2 दिन पहले सब भारत आए. दिल्ली से मेरे मांपापा मौसीजी को ले कर मुंबई आए. एकांत मिलने पर गरिमा ने मुझे बताया कि पराग बहुत बदल गया है और उस का बहुत खयाल रखता है. सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा. मैं ने गरिमा की आंखों में चमक पहले ही देख ली थी.
नियत दिन पर श्रेया का विवाह हो गया. विवाह में उपस्थित सभी रिश्तेदारों को धन्यवाद देते हुए पराग ने सार्वजनिक रूप से गरिमा की दिल खोल कर प्रशंसा की. गरिमा ने संकोच से सिर झुका लिया, पर वह बहुत प्रसन्न थी. मैं सोचने लगी कि देर से ही सही, उसे न्याय तो मिला.
आज श्रेया की शादी कर के उस ने श्रेया के प्रति अपना यह कर्तव्य भी पूरा कर लिया था. उस ने यह साबित कर दिखाया था कि जन्म देने वाले से पालने वाला बड़ा होता है. गरिमा आज सब की नजरों में ऊपर उठ गई थी. मेरे मुख से बरबस निकल पड़ा, ‘‘गरिमा, तू धन्य है.’’
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