मैं कातिबा
मैं कातिबा अक्सर तसव्वुर की दुनिया में खोई रहती हूँ ,
और अपने ख्यालातों के खियाबा में से बेशकिमती नगमें चुनती हूँ ,
कुछ नगमें खुर्र्म सी ,
कुछ नगमें गिर्राब सी ,
कुछ अफ़सुर्दा सी
तो कुछ खुबसूरत ख्वाब सी !
कोशिश मेरी यही रहती है की सारे गौहान पर छा जाए लिख दूँ वो नगमें नायाब सी ।
मैं कातिबा.।
बेनज़ीर हो मेरे हर शब्द
दिलों को जीतना है इसका जुनून ,
गढूं कुछ ऐसी बंदिशें जिसे पढ़ कर मिले हर दिल को सुकून ।
मेरा हर शब्द इश्रत हो इश्राक हो ,
हर अल्फाज में ईद की सेंवई सी मिठास हो ।
सारे कौम में .खलिश पैदा कर दे ,
नातर्स ,नादीदा ,नाराश्ती ज़माने के दिलों में प्रेम , भाईचारा के फूल खिला दे ,
फ़िगार कलेजे को भी मोहब्बत से भर दे ,
हो मेरा हर शब्द इतनी लाजवाब सी ।
मैं कातिबा.. by पूजा
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