गुरूवार के दिन करें भगवान विष्णु के इस विशेष मंत्रो का जाप


भगवान विष्णु जो समस्त लोको के पालनहार है जिनके भक्त वैष्णव कहलाते है | वे  अपने आराध्य को कही जगन्नाथ भगवान के रूप में तो कही कृष्ण के रूप में तो कही पदमनाभ स्वामी के रूप में कही रंगनाथ स्वामी के रूप में पूजते है | इन सभी देवताओ का आधार लक्ष्मी पति विष्णु ही है | भगवान विष्णु का विशेष दिन गुरूवार को माना जाता है | इन्हे सत्य नारायण भगवान के नाम से इस दिन व्रत और पूजा की जाती है |

पूजा व मंत्र जप के बाद विष्णु धूप, दीप व कर्पूर आरती कर देव स्नान कराया जल यानी चरणामृत व प्रसाद ग्रहण करें। चातुर्मास, एकादशी, द्वादशी व पूर्णिमा तिथियों पर भगवान विष्णु की भक्ति, श्रीविष्णु मंत्र ध्यान के जरिए बड़ी मंगलकारी मानी गई है। भगवान विष्णु को समर्प्रित मुख्य मंत्र

ॐ नमोः नारायणाय. ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय ||

 विष्णु गायत्री  महामंत्र

 ऊँ नारायणाय विद्महे।

वासुदेवाय धीमहि।

तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।

 विष्णु कृष्ण अवतार मंत्र

 श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे।

हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।

 निचे लिखा मंत्र भगवान विष्णु की महानता का परिचायक है इसका रोज जप  करना चाहिए |

 विष्णु रूपं पूजन मंत्र

 शांता कारम भुजङ्ग शयनम पद्म नाभं सुरेशम।

विश्वाधारं गगनसद्र्श्यं मेघवर्णम   शुभांगम।

लक्ष्मी कान्तं कमल नयनम योगिभिर्ध्यान नग्म्य्म ।

वन्दे विष्णुम  भवभयहरं सर्व लोकैकनाथम।।

 मंत्र का अर्थ : जिस हरि का रूप अति शांतिमय है जो शेष नाग की शय्या पर शयन करते है | इनकी नाभि से जो कमल निकल रहा है वो समस्त जगत का आधार है | जो गगन के समान हर जगह व्याप्त है , जो नील बादलो के रंग के समान रंग वाले है | जो योगियों द्वारा ध्यान करने पर मिल जाते है , जो समस्त जगत के स्वामी है , जो भय का नाश करने वाले है | धन की देवी लक्ष्मी जी के पति है इसे प्रभु हरि को मैं शीश झुकाकर प्रणाम करता हूँ |

कैसे करे भगवान विष्णु के मंत्रो का जाप

स्नान के बाद घर के देवालय में पीले या केसरिया वस्त्र पहन श्रीहरि विष्णु की प्रतिमा को गंगाजल स्नान के बाद केसर चंदन, सुगंधित फूल, तुलसी की माला, पीताम्बरी वस्त्र कलेवा, फल चढ़ाकर पूजा करें। भगवान विष्णु को केसरिया भात, खीर या दूध से बने पकवान का भोग लगाएं।

– धूप व दीप जलाकर पीले आसन पर बैठ तुलसी की माला से नीचे लिखे विष्णु गायत्री मंत्र की 1, 3, 5, 11 माला का पाठ यश, प्रतिष्ठा व उन्नति की कामना से करें –

ऊँ नारायणाय विद्महे।

वासुदेवाय धीमहि।

तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।

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