कहानी - नया सवेरा
बड़े भाईसाहब की रोजरोज देर से घर आने की आदत आखिर पिताजी से छिपी न रह सकी. बड़ी भाभी ने उन्हें बचाने की अपनी तरफ से पूरी कोशिश की, किंतु छोटी भाभी के कारण आखिर यह बात उन तक पहुंच ही गई. बड़ी भाभी बंबई में पलीबढ़ी थीं. खातेपीते अच्छे परिवार से आई थीं. ऐसा नहीं था कि हम लोग उन के मुकाबले कम थे. पिताजी बैंक में मैनेजर थे. मां जरूर कम पढ़ीलिखी थीं किंतु समझदार थीं.
बड़ी भाभी बंबई से आई थीं, शायद इसी कारण हम सभी को गंवार समझती थीं क्योंकि हम जौनपुर जैसे छोटे शहर में रहते थे. हां, भैया को वे जरूर आधुनिक समझती थीं. कारण, घर के बड़े बेटे होने के नाते उन का लालनपालन बड़े लाड़प्यार से हुआ था. कौन्वैंट में पढ़ने के कारण धाराप्रवाह अंगरेजी बोल लेते थे. सुबह से ही बड़ी भाभी का बड़बड़ाना चालू था, ‘जाने क्या समझते हैं सब अपनेआप को. आखिर हैं तो जौनपुर जैसे छोटे शहर के...रहेंगे गंवार के गंवार. किसी को आगे बढ़ते देख ही नहीं सकते. हमारे बंबई में देखो, रातरात भर लोग बाहर रहते हैं किंतु कोई हंगामा नहीं होता.’
छोटी भाभी सिर झुकाए आटा गूंधती रहीं जैसे कुछ सुनाई न दे रहा हो. मुझे कालेज जाने में देर हो रही थी. हिम्मत कर के रसोई में पहुंची. धीमी आवाज में बोली, ‘‘भाभी, मेरा टिफिन.’’
‘‘लो आ गई...कालेज में पहुंच गई, किंतु अभी तक प्राइमरी के बच्चों की तरह बैग में टिफिन डाल कर जाएगी. एक हमारे यहां बंबई में सिर्फ एक कौपी उठाई, पैसे लिए और बस भाग चले.’’ वहां रुक कर और सुनने की हिम्मत नहीं हुई. सोचने लगी, ‘आखिर भाभी को हो क्या गया है, आज से पहले उन्होंने कभी ऐसा नहीं कहा.’
जैसे ही भोजनकक्ष में गई, छोटे भैया की आवाज सुन कर पैर रुक गए.
‘‘आखिर आप करते क्या हैं बाहर आधी रात तक? हम सभी की नींद खराब करते हैं...’’
पिताजी बीच में ही बोल पड़े, ‘‘बेटे, आखिर ऐसी कौन सी कमाई करते हो जिस के कारण तुम्हें आधीआधी रात तक बाहर रहना पड़ता है? तुम्हारा दफ्तर तो 5 बजे तक बंद हो जाता है न?’’
‘‘पिताजी, दफ्तर के बाद कभी मीटिंग होती है, बड़ेबड़े लोगों के साथ उठनाबैठना पड़ता है. आगे बढ़ने के लिए आखिर उन के तौरतरीके भी तो सीखने पड़ते हैं,’’ बड़े भैया ने अत्यंत धीमी आवाज में कहा.
पिताजी के सामने किसी की हिम्मत नहीं पड़ती थी तेज आवाज में बोलने की. वे न ऊंचा बोलते थे और न ही उन्हें ऊंची आवाज पसंद थी. वे बड़े भैया को हिदायत दे कर छड़ी संभालते हुए बाहर निकल गए. किंतु मां से नहीं रहा गया, उन्होंने बड़े भैया को डांटते हुए कहा, ‘‘तुझ को पिताजी से झूठ बोलते शर्म नहीं आती. आगे बढ़ने की इतनी ही फिक्र थी तो 3-3 ट्यूशनों के बावजूद तुम कभी प्रथम क्यों नहीं आए? मन लगा कर पढ़ा होता तो यह नाटक करने की जरूरत ही न पड़ती. हम सब को पाठ पढ़ाने चले हो. रात 12 बजे कौन सी शिक्षा लेते हो, जरा मैं भी तो सुनूं.’’
‘‘मां, तुम क्या जानो दफ्तर की बातें. तुम्हारी समझ में कुछ नहीं आएगा. तुम तो बस आराम करो और छोटे, तू अपने काम से काम रख,’’ बड़े भैया ने छोटे भैया की तरफ घूर कर कहा.
तभी पीठ पर किसी का स्पर्श पा मैं पीछे पलटी. बड़ी भाभी टिफिन लिए खड़ी थीं. कंधे पर हाथ रख प्यार से बोलीं, ‘‘मेरे कहे का बुरा मत मानना, बीनू, पता नहीं मुझे क्या हो गया था.’’
मैं ने मुसकराते हुए टिफिन लिया और बिना कुछ कहे बाहर चली गई.
करीब 10-12 दिनों तक सब ठीक चलता रहा. बड़े भैया भी समय से घर आ जाते थे. मां, पिताजी तो पहले खा कर सोने चले जाते. बाद में हम सभी साथ खाना खाते. इकट्ठे खाना खाते बड़ा अच्छा लगता. दोनों भाभियों में भी पहले की तरह बात होने लगी थी. अचानक एक रात ‘खटखट’ की आवाज से नींद खुल गई. मन आशंका से कांप गया. बगल का कमरा बड़े भैया का था. हिम्मत कर के मैं उठी. सोचा, उन्हें उठा दूं. कुंडी खोलतेखोलते किसी की आवाज सुन अचानक हाथ रुक गया. ध्यान से सुनने पर पता चला कि यह बड़े भैया की आवाज है. वे भाभी से कह रहे थे, ‘‘दरवाजा बंद कर के सो जाओ. जल्दी लौट आऊंगा.’’
घड़ी की तरफ देखा, साढ़े 11 बज रहे थे. आखिर क्या बात है? इतनी रात गए भैया क्यों बाहर जा रहे हैं? कहीं किसी की तबीयत तो नहीं खराब हो गई? किंतु आवाज तो बस बड़े भैया, भाभी की ही थी. सोचा, जा कर भाभी से पूछूं, किंतु हिम्मत न हुई.इसी उधेड़बुन में नींद गायब हो गई. काफी कोशिश के बाद जब हलकी नींद आई ही थी कि ‘खटपट’ सुन कर आंख फिर खुल गई. शायद भैया आ गए थे. घड़ी देखी, 3 बज रहे थे. भैया ने बाहर जाना छोड़ा नहीं था. सब की आंखों में धूल झोंकने के लिए यह चाल चली थी. उन की इस चाल में भाभी भी शरीक थीं.
रात को आनेजाने का सिलसिला करीब रोज ही चलता था. एक रात दरवाजे पर होती लगातार दस्तक से मेरी नींद उचट गई. भाभी को शायद गहरी नींद आ गई थी. मैं जल्दी से उठी क्योंकि नहीं चाहती थी कि मांजी उठ जाएं और पिताजी तक बात पहुंचे. जैसे ही मैं ने दरवाजा खोला, बदबू का एक झोंका अंदर तक हिला गया. भैया ने शायद ज्यादा पी ली थी. अंदर आते ही बोले, ‘‘क्यों जानू, आज इतनी...’’ तभी मेरी तरफ नजर पड़ते ही खामोश हो गए.
तब तक भाभी आ गई थीं. वे बिना कुछ कहे सहारा दे कर भैया को कमरे में ले गईं. उस रात मैं सो न सकी. सारी रात करवटें बदलते बीती. यही सोचती रही कि मां से कह दूं या नहीं? कुछ समझ में नहीं आ रहा था. सुबह थोड़ी झपकी आई ही थी कि बड़ी भाभी ने आ कर जगा दिया. बोलीं, ‘‘बीनू, कृपया रात की बात किसी से न कहना.’’
तब तक मैं ने भी निर्णय कर लिया था कि बात छिपाने से अहित भैया का ही है. मैं ने उन की तरफ सीधे देखते हुए कहा, ‘‘वह तो ठीक है भाभी, किंतु जब मैं ने रात को दरवाजा खोला तो विचित्र बू का आभास हुआ. कहीं भैया...’’
भाभी बीच में ही मुंह बना कर बोलीं, ‘‘हमें तो कोई गंध नहीं आई.’’
मैं खुद अपने प्रश्न पर लज्जित हो गई. अपने पर क्रोध भी आया कि जब भाभी को भैया की फिक्र नहीं है तो मैं ही क्यों चिंता में पड़ूं. इसी तरह 2 हफ्ते और बीत गए. मैं भी घर में कलह नहीं कराना चाहती थी, इसीलिए मुंह सी लिया.
किंतु कब तक कोई बात छिपती है. छोटी भाभी को इस बात की भनक लग गई. उन्होंने बड़ी भाभी, बड़े भैया के बारे में अपनी शंका व्यक्त की. वे उन्हें समझाना चाहती थीं किंतु बड़े भैया ने भाभी पर न जाने क्या जादू कर दिया था कि वे वैसे तो अच्छीभली रहतीं किंतु जहां भैया की बात होती, वे झगड़ने को तैयार हो जातीं. उन से छोटी भाभी की बात सहन न हो सकी. दनदनाती हुई मेरे कमरे में आईं और गुस्से में बोलीं, ‘‘बीनू, तुझ से नहीं रहा गया न. कैसा बित्तेभर का पेट है. पचा नहीं सकी, उगल ही दिया?’’
मां वहीं बैठी थीं. वे आश्चर्य से कभी मुझे तो कभी भाभी को देखने लगीं.
‘‘क्या बात है, बेटे, आखिर हुआ क्या?’’ मां ने पूछा.
मैं ने भी पूछा, ‘‘पर भाभी, हुआ क्या? मैं ने तो किसी को कुछ नहीं कहा.’’ पर वे कहां सुनने वाली थीं. सच ही कहा गया है, क्रोध में इंसान का दिमाग पर कोई बस नहीं होता. तब तक छोटे भैया व भाभी भी आ गए. गनीमत यह थी कि पिताजी शहर से बाहर गए हुए थे और बड़े भैया सो रहे थे.
छोटे भैया ने मां को धीरे से सब बता दिया. फिर भाभी से बोले, ‘‘आप समझती क्यों नहीं हैं, रात देर से घर आना कोई अच्छी बात नहीं है.’’
‘‘अच्छाबुरा वे खूब समझते हैं. साहब बनने के लिए बड़े लोगों के साथ उठनाबैठना तो पड़ेगा ही, वरना कौन तरक्की देगा.’’
मां से सहन नहीं हुआ. उन्होंने जोर से कहा, ‘‘ऐ बहू, रात देर से आने से लोगों की तरक्की होती है, यह एक नई बात सुन रही हूं.’’
‘‘नई नहीं, यह सच है. आप पुराने विचारों की हैं. आप को क्या पता, जब तक बड़े लोगों के साथ पिओपिलाओ नहीं, अफसरी नहीं मिलती,’’ तैश में भाभी के मुंह से खुद ही सारी बात निकल गई.
‘‘ओह, तो आप को पता है कि वे पी कर आते हैं?’’ छोटे भैया ने पूछा.
‘‘थोड़ीबहुत साथ देने के लिए चख ली तो क्या बुराई है. बंबई में तो हर नौजवान बीयर पीता है और मेरे भाई खुद पीते हैं.’’
भाभी से बात करना अपना माथा फोड़ना था. तब तक शोर सुन कर बड़े भैया भी आ गए. उन्हें देख छोटे भैया ने कहा, ‘‘कल आप के दोस्त अजय मिले थे. उन्होंने बताया कि आजकल आप के पास बहुत पैसा रहता है. क्या कोई दूसरी नौकरी मिल गई है? सुनो भाभी, वे बोल रहे थे कि आप के पिताजी हजार रुपए महीना जेबखर्च भेजते हैं,’’ उन्होंने बड़े भैया की उपस्थिति में भाभी से स्पष्टीकरण मांगा.
छोटे भैया की बात सुन बड़ी भाभी ने पहले तो नजरभर बड़े भैया को देखा, फिर जोर से हंस कर ‘हां’ में सिर हिला दिया. बात तो स्पष्ट थी, किंतु बड़े भैया ने ऐसा जाल उन पर फेंका था, जिस से बड़ी भाभी जैसी नारी का बच निकलना मुश्किल था. वे यह सोच कर खुश थीं कि उन का पति कितना अच्छा है जो बिना कुछ पाए ही उन के पिता की प्रशंसा का ढिंढोरा पीट रहा है. यही कारण था कि इतने गंभीर प्रश्न को भी उन्होंने हंसी में उड़ा दिया.
उन्होंने मस्तिष्क पर तनिक भी जोर न डाला कि आखिर पैसों की बारिश हो कहां से रही है. देवर का मुंह ‘हां’ कह कर बंद कर दिया था. भाभी पति की तरफ अपार कृतज्ञता से देख रही थीं.
मां यह सब सुन कर सन्न रह गईं. उन्होंने अपना माथा पीट लिया. ‘‘क्यों बड़े, क्या यही दिन देखना रह गया था? क्या कमी थी जो इस नीच हरकत पर उतर आया है? अगर यही करना है तो जा, बन जा घरजमाई. यहां यह सब नहीं होगा, समझे,’’ कह कर रोती हुई वे कमरे से बाहर निकल गईं. छोटे भैया और भाभी भी धीरे से खिसक लिए.
मां की बात सुन बड़े भैया कुछ अनमने से हो गए थे, किंतु भाभी ने उन्हें संभाला, ‘क्यों चिंता करते हैं. सब ठीक हो जाएगा.’
फिर दोनों अपने कमरे में चले गए. पड़ोस में लड़के की शादी थी. संबंध अच्छे थे, इसलिए सपरिवार बुलाया था. सभी तैयार हो गए. हम बड़ी भाभी का इंतजार कर रहे थे. मां ने मुझे उन्हें बुलाने के लिए भेजा.
मैं ने बाहर से ही आवाज दी, ‘‘भाभी, जल्दी चलिए.’’
‘‘बीनू, अंदर आ जा,’’ भाभी बोलीं.
अंदर वे तैयार खड़ी कुछ ढूंढ़ रही थीं. बोलीं, ‘‘पता नहीं, लौकर की चाबी कहां रख दी है. नैकलैस के बिना कैसे चलूं. इतना ढूंढ़ा पर मिल ही नहीं रहा. तेरे भैया भी ढूंढ़ कर थक गए. अभी उन्हें नहाने भेजा है.’’
भैया ने स्नानघर से ही कहा, ‘‘क्यों परेशान हो रही हो. मां से मांग लो, आ कर वापस कर देना. मैं थोड़ी देर में आता हूं.’’
पर मां से जेवर निकलवाना इतना आसान नहीं था. उन का एक ही जवाब होता था, ‘तुम लोगों को पहनने का ढंग है नहीं, कहीं तोड़ दिया या खो दिया तो? ना बाबा, मैं तो नहीं देती, ये सब बीनू के लिए हैं. तुम लोगों से तो कुछ होगा नहीं, कम से कम मेरे गहने तो रहने दो.’
भाभी को जैसे कुछ याद आया. उन्होंने प्यार से पास आ कर मेरे माथे पर हाथ फेरा. जी धक से हो गया कि अब क्या होने वाला है. वे बोलीं, ‘‘बीनू, जन्मदिन पर जो नैकलैस पिताजी ने तुम्हें दिया था, उसे एक रात के लिए दे दो.’’
‘‘पर भाभी, मैं कैसे...’’
‘‘अरे, कुछ नहीं होगा. मैं मां से नहीं कहूंगी. उन्हें पता ही नहीं चलेगा. मैं वहां से आ कर तुरंत दे दूंगी.’’
मरती क्या न करती, बिना परिणाम सोचे मैं ने नैकलैस उन्हें दे दिया.
पर मां को जैसे शक हो गया था. वे कभी भाभी के गले को तो कभी मुझे घूरतीं. मैं बिना कुसूर के मुंह छिपाए इधर से उधर घूम रही थी और भाभी ठहाके पर ठहाके लगाए जा रही थीं. परंतु छोटी भाभी को पता नहीं कैसे सब पता चल जाता था. वे पूरे समय मेरे साथ ही बनी रहीं. उन की मौजूदगी दिलासा देती रही. उन की सब से बड़ी खासीयत यही थी कि वे बिना कुछ कहे सब कुछ कह जाती थीं.
उस रात तो भाभी ने नैकलैस नहीं लौटाया. मैं डर के मारे मांगने की हिम्मत न कर सकी. दूसरे दिन सुबह ही मैं ने धीरे से उन के कमरे में जा कर नैकलैस की बात की. भाभी कुछ घबराई हुई थीं. भैया का कुछ पता नहीं था. वे सुबह ही सुबह मालूम नहीं कहां चले गए थे.
‘‘बीनू, मैं ने नैकलैस यहीं सामने रखा था, मालूम नहीं कहां गया. मिल ही नहीं रहा. कब से खोज रही हूं,’’ भाभी ने रोंआसी हो कर कहा.
मुझे तो जैसे चक्कर आ गया. सोचने लगी, हाय अब क्या होगा? किसी तरह कमरे में आ कर बिस्तर पर गिर पड़ी. आंखों से आंसू बहने लगे. सिर पर किसी के स्पर्श से आंखें खोलीं तो देखा, सामने छोटी भाभी खड़ी हैं. उन की गोद में मुंह छिपा कर मैं रो पड़ी.
छोटे भैया भी तब तक वहां भाभी को खोजते आ पहुंचे थे. मुझे इस हालत में देख सब को हंसाने के लिए बोले, ‘‘क्यों बीनू, कल की शादी देख मन मचल गया क्या? खूब भाभी को मसका लग रहा है.’’
उन की बात सुन मैं और जोर से रो पड़ी. छोटी भाभी ने उन्हें इशारे से बुलाया व सारी बात समझाई. सुनते ही भैया बड़ी भाभी के कमरे में पहुंचे. यह तो अच्छा था कि मां पूजा पर बैठ चुकी थीं और डेढ़ घंटे तक उन के उठने की कोई संभावना न थी. छोटी भाभी के साथ मैं भी भैया के पीछेपीछे बड़ी भाभी के कमरे में पहुंची.
नैकलैस ढूंढ़तेढूंढ़ते भाभी को अपने लौकर की चाबी मिल गई. मुझे देख उन्होंने कहा, ‘‘बीनू, यदि तुम्हारा नैकलैस नहीं मिला तो मैं अपना नैकलैस तुम्हें दे दूंगी, तुम चिंता मत करो,’’ उन की आवाज बता रही थी कि उन्हें भी नैकलैस न मिलने का गहरा दुख है.
उन्होंने सब के सामने लौकर खोला तो चक्कर खा कर गिर पड़ीं. भैया ने उन्हें बिस्तर पर लिटाया. छोटी भाभी मुझे छोड़ उन की तरफ लपकीं और मैं पानी लेने दौड़ पड़ी. यह सब इतनी जल्दी हुआ कि कुछ सोचने का होश ही नहीं रहा.
छोटे भैया ने देखा कि लौकर खाली पड़ा है. तब तक भाभी को भी होश आ गया. वे जोरजोर से रोने लगीं. छोटे भैया इस मौके को कहां छोड़ने वाले थे. बड़ी भाभी को आड़े हाथों लिया.अंत में यह फैसला हुआ कि मां और पिताजी को कुछ न बताया जाए. पिताजी दिल के मरीज हैं, शायद इस सदमे को बरदाश्त न कर सकें. सभी आगे की योजना बनाने लगे कि तभी बड़े भैया मजे से सीटी बजाते कमरे में दाखिल हुए.
भाभी को बिस्तर पर लेटे और हम सब को पास बैठे देख वे दौड़ कर उन के पास पहुंचे व घबरा कर बोले, ‘‘सुमन, क्या हुआ, तुम ठीक तो हो?’’
‘‘खबरदार, जो मुझे हाथ लगाया. अब और नाटक मत करो,’’ इस तेज आवाज ने हम सब को सकते में डाल दिया. उन्होंने भैया को खूब झिड़का, ‘‘तुम पति बनने के योग्य नहीं हो. सिर्फ शराब पीने के लिए तुम ने इतनी घिनौनी हरकत कर डाली. मुझे मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा.’’
भैया ‘सुमन सुनो तो’ कहते रहे किंतु भाभी पर तो जैसे भूत सवार था. तब भैया फौरन बाहर जाने को पलटे.
‘‘खबरदार, जो एक कदम भी आगे बढ़ाया,’’ इस आवाज ने भैया के पैरों में जैसे जंजीर डाल दी. बड़े भैया आश्चर्य से पत्नी को देख रहे थे. उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि जो पत्नी उन के आगेपीछे गऊ की तरह दुम हिलाती थी, आज शेरनी कैसे बन गई.तब तक भाभी के कहने पर छोटे भैया ने बड़े भैया की तलाशी ले डाली. उन की जेब से रुपयों की गड्डी तथा एक रसीद मिली. यह देख भाभी सिर पकड़ कर वहीं बैठ गईं.
छोटे भैया रसीद व रुपए ले कर तुरंत बाहर निकल गए. बड़े भैया भी पीछेपीछे पता नहीं कहां चल पड़े.
करीब आधे घंटे में छोटे भैया नैकलैस व भाभी की बालियां ले कर लौट आए. उन्होंने बताया कि भैया ने भाभी के सारे गहने उसी सुनार के यहां गिरवी रख छोड़े हैं जहां नैकलैस दिया था.
भाभी के तो आंसू ही नहीं रुक रहे थे. अचानक छोटी भाभी कमरे से चली गईं. कुछ देर बाद लौटीं तो उन के हाथों में कुछ रुपए थे. उन्होंने रुपए पति को दे कर कहा, ‘‘जितने भी गहने आ सकते हैं, ले आइए.’’
तब तक मैं भी अपनी जमाराशि ले आई थी. बड़ी भाभी ने हम दोनों को लिपटा लिया और जोर से रो पड़ीं. हम सब को भी रोना आ गया.छोटे भैया ने बात संभाली, उन्होंने फिर से सब को सचेत किया कि मां को भनक तक नहीं लगनी चाहिए.
बड़ी भाभी दिनभर कमरे से बाहर न निकलीं. मां 2-3 बार देखने भी आईं पर उन्होंने बीमारी का बहाना बना दिया. उन के 1 वर्ष के बेटे को छोटी भाभी ही संभाले रहीं.
छोटे भैया ने बड़ी भाभी के व अपने खाते से रुपए निकाल कर भाभी के सारे गहने शाम तक ला दिए. बड़े भैया का रातभर कुछ पता न चला.
सुबहसुबह उन के दोस्त अजय ने आ कर खबर दी कि वे भैया को अस्पताल में दाखिल करा कर आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि बड़े भैया अपने किए पर इतना शर्मिंदा थे कि सुबह से ही शराब पी रहे थे. रात बेहोशी की हालत में उन्हें अस्पताल में दाखिल करवाया. ज्यादा पीने से उन के एक गुरदे ने काम करना बंद कर दिया है. रातभर वे वहीं थे. डाक्टरों ने औपरेशन कर दिया है. वे खतरे से बाहर हैं.
अभी हम सब यह बुरी खबर सुन ही रहे थे कि नौकर ने आ कर खबर दी कि पिताजी ने छोटे भैया को अपने कमरे में बुलाया है. सुन कर सभी घबरा गए.
छोटे भैया ने सब को शांत किया और ऊपर गए. हम सब से रहा न गया. सभी दबेपांव पिताजी के कमरे के बाहर जा पहुंचे. मां भी वहीं थीं.
पिताजी ने शांत स्वर में पूछा, ‘‘पैसों की इतनी जरूरत आन पड़ी थी कि इतने सारे रुपए एकसाथ तुम ने व बहू ने निकाले?’’
सब का खाता उसी बैंक में था जहां वे मैनेजर थे. कैशियर छोटे भैया को पहचानता था. चापलूसी के लिए शायद उस ने सारी बात पिताजी को बता दी थी.
छोटे भैया ने सारी बातें पिताजी को बता दीं. बस, नैकलैस की बात छिपा गए. मां तो सुन कर ‘हायहाय’ करने लगीं किंतु पिताजी ने उन्हें डांट कर चुप करा दिया. फिर बोले, ‘‘मुझे खुशी है कि छोटे ने इस विपत्ति में हिम्मत और समझदारी से काम लिया. चलो, अस्पताल चलते हैं. शायद उस नालायक को भी सद्बुद्धि आ जाए.’’
हम सभी अस्पताल पहुंचे. पहले भैया हम सब से मिलने को तैयार ही न हुए. किंतु उन के दोस्त अजय के बहुत समझाने पर मिलने को राजी हो गए. वे किसी से आंखें नहीं मिला पा रहे थे. दोनों हाथों से मुंह ढक कर रो पड़े. उन्हें रोते देख हम सब रो पड़े. पिताजी उन के सिर पर हाथ फेरते रहे. मां उन के आंसुओं को पोंछती हुई चेहरा भिगो रही थीं.
आखिर बड़े भैया बोले, ‘‘मुझे जीने का कोई हक नहीं है. मैं ने सब के विश्वास को धोखा दिया है.’’
‘‘नहीं बेटे, ऐसा नहीं कहते. जब आंख खुले, तभी सवेरा. देखो, यह क्या करिश्मा है कि समय रहते तुम्हें सद्बुद्धि आ गई,’’ पिताजी ने उन्हें धीरज बंधाया.
हम सभी की आंखें भरी थीं, पर आंसू अब गम के नहीं, खुशी के थे.
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